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18 जून 2019

आर्टिकल फिफ्टीन यूँ तो

आर्टिकल फिफ्टीन यूँ तो संविधान में समान व्यवहार के लिए देशवासियों को पाबंद करने का निर्देश है जिसमे ,,जिसमे ,,जाति ,धर्म ,समाज ,ऊंच ,नीच ,अमीरी गरीबी के भेदभाव के बिना इन्साफ और सामान सामजिक न्याय की पालना सुनिश्चित के आप आदमी के पक्ष के अधिकार है ,लेकिन व्यवहार में देश में ऐसा होता नहीं है ,वोह तब ,जब देश में सर्वोच्च न्याययालय ,लोकसभा ,विधानसभा ,राष्ट्रपति ,अधिकारी सहित कई वरिष्ठ लोग ,पत्रकार इस व्यस्था को लागू करने के लिए वचनबद्ध है ,,खेर देश के हालात ,पुलिस तफ्तीश ,इन्साफ का सच सभी जानते है ,लेकिन इस सच को दर्शाने के लिए गौरव सोलंकी ,अनुभव सिन्हा द्वारा लिखित प्रदर्शित होने जा रही फिल्म ,,आर्टिकल फिफ्टीन ,विवादों में आ गयी है ,बात भी सच है ,खुद फिल्म देश के क़ानून और समाजों के साथ न्याय नहीं कर पायी है ,,,फिल्म में बदायूं गेंग रेप 2014 ,,गुजरात के ऊना में दलितों के साथ बांध कर पिटाई किये जाने की घटना को आधार बनाया गया है ,28 जून को रिलीज़ होने होने जा रही फिल्म की थीम अच्छी हो सकती है ,संदेश बेहतर से बेहतर देने की कोशिश हो सकती है ,लेकिन कोशिश में ईमानदारी नहीं हो ,बेईमानी इस क़द्र हो के कहानी की सच्चाई ही बदल दी ,जाए और सच्ची कहानी को आधार बताकर फिल्म बनाने का रोना रोया जाए तो अपराध तो हो ही जाता है ,उत्तरप्रदेश के बदायूं के एक गाँव में कुछ आपराधिक लोग दो लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार करते है ,कारण ऊंच नीच ,भेदभाव ,मज़दूरी ,फिर उनकी हत्या कर उन्हें पेड़ पर लटका देते है ,,पुलिस की पराकाष्ठा देखिए के पुलिस घटना होने से इंकार करती है ,,ओर किलिंग बताने की कोशिश करती है ,चार सो बार मोबाइल पर लड़कों से बात करने के रिकॉर्ड लाती है ,फिर जांच दिल्ली सरकार की सी बी आई के हाथों में होती है ,जांच के नाम पर फोर्मलिटी फिर मुक़दमे में क्लोज़र रिपोर्ट ,अनुत्तरित लापरवाही भरा अनुसंधान ,लेकिन पोक्सो कोर्ट का भला हो जो घटना का सूक्ष्मता से अध्ययन ,किया ,मेडिकल रिपोर्ट ,वगेरा के अभाव में बलात्कार की घटना तो नहीं मानी ,लकिन अपरहरण का मामला बनाकर ,प्रकरण दर्ज कर लिया ,अपराधियों को तलब किया ,दूसरी घटना गुजरात के ऊना में दलितों की बेरहमी से दलित होने की वजह से पिटाई को मुद्दा बनाया है ,,,लेकिन उत्तरप्रदेश के बदायूं में जो घटना हुई ,इस घटना में लिप्त समाज के लोग ,पीड़िता दोनों की ,धर्म समाज ही बदलकर फिल्म बनाई गयी ,यूँ तो सत्य घटना के नाम पर ऐसी घटनाओं को उजागर करना भारत के क़ानून में अपराध है लेकिन सेटिंग और रसूखात के नाम अपर फिल्म सेंसर बोर्ड में कुछ भी परोस कर पास करवा लिया जाता है ,,फिल्म सेंसर नियम ,सिनेमा ऑटोग्राफ नियम में सेंसर से पास होने के बाद फिल्म के प्रदर्शन को रोकने का कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं है ,सिर्फ क़ानून व्यवस्था बिगाड़ देने की धमकी के सिवा ,,फिल्म बनाने वाले ने बलात्कार के अपराध के समाज में नामज़द समाज के अपराधियों ,पुलिसकर्मियों के खुलासा के बाद भी ,ब्रह्मण समाज को इस मामले में लिप्त करने का प्रयास किया है जो सच्चाई से कोसों दूर है ऐसे में ब्रह्मणों में भी चाहे ऊंच नीच का मामला उजागर किया हो लेकिन घटना में जो समाज कभी लिप्त नहीं रहा ,उस घटना से उस समाज को जोड़कर पुरे देश में फिल्म बताकर दिखाना ,सामजिक अपराध के साथ ,कठोर आपराधिक क़ानूनों के तहत दंडात्मक अपराध है इस मामले में फिल्म रिलीज़ के पहले स्क्रिप्ट को देखकर ,,बलात्कार में लिप्त समाज को छोड़कर ब्रह्मण समाज को उससे जोड़ना निंदनीय है ,आपराधिक कृत्य है ,उसके खिलाफ तो मुक़दमा दर्ज कर फिल्म के लेखक ,प्रोड्यूसर ,निर्देशक ,कलाकारों को गिरफ्तार आज नहीं तो कल होना ही होगा ,वरना उस पार्ट को कट करना ही होगा ,में भी इस मामले बिना किसी घटना में लिप्तता के काल्पनिक आधार और फिल्म का आधार बढ़ाने के मक़सद से इस अपराध के खिलाफ हूँ और में इस मामले में न्याय के संघर्ष में मेरी सम्पूर्ण क़ानूनी जानकारियों ,सामाजिक संस्थाओं की शक्तियों के साथ ,समर्थकों के साथ ,ब्रह्मण समाज के संघर्ष के साथ उनकी इन्साफ की इस लड़ाई के साथ हूँ ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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