बिना पढ़े लिखे ,,बिना सोचे समझे लोग ,,जो किसी भी अलफ़ाज़ का अर्थ जाने बगेर
बावेला मचाते है ,,उन्हें जाहिल गंवार से ज़्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता
,,,पिछले दिनों कुछ साथियों हज़रत ऐ मखन्नस अलफ़ाज़ पकड़ लिया ,,कई महीनों तक
,,अनजाने में एक दूसरे को हज़रत ऐ मुख़न्नस कहा जाता रहा ,,जब इन लोगो को
बताया के इसका अर्थ ,,किन्नर से होता है ,तो यह अनजान लोग बहुत शर्मिंदा
हुए ,,,ऐसे ही क़ारूरा ,,के नाम पर कई लोग चोकते रहे ,,इस अलफ़ाज़ का इस्तेमाल
करते रहे ,,लेकिन जब पता चला ,,मूत्र को क़ारूरा कहते है तो
यह लोग खुद को जाहिल कहते सुने गए ,,इसी तरह से ,,फतवे के मामले में लगभग
सभी पत्रकार ,,जाहिल ,,गंवार है ,,वोह फतवे को एक साम्प्रदायिक रंग देने
की कोशिश करते है ,,एक नफरत का ज़रिया बनाने की कोशिश करते है ,,ऐसे पत्रकार
जिनका मन अपराधी होता है ,,जो किसी के इशारे पर ,,ऐसे अल्फ़ाज़ों का ,,अफवाह
फैलाने में मिसयूज़ करते है ,,वोह लोग यह नहीं जानते के आम लोगो को जब उनकी
बिकाऊ करनी का पता चलेगा ,,तो उन्हें सड़को पर लोग दौड़ा दौड़ा कर बदला लेंगे
,,दोस्तों फतवा मतलब ,,एक सलाह ,,,मानो तो आपकी मर्ज़ी नहीं मानो तो आपकी
,मर्ज़ी ,वैसे सलाह भी वोह दे सकता है जो खुद इस लायक़ हो ,,बिन मांगे हमारे
देश में सलाह देने वालों की फहरिस्त लम्बी है ,,अख़बार वाले ,,टी वी वाले
रोज़ जनता को ,,नेताओं को ,,अफसरों को सलाह देते फिरते है ,,इसे फतवा देना
कहते है ,,और इससे स्पष्ट है के हमारे देश में सर्वाधिक फतवेबाज ,,कथित
अख़बार नवीस ,,इलेक्ट्रॉनिक मिडिया ,,और मंच पर भाषण देने वाले ,,बढे बढे
नेता है ,,जो जनता सलाह देते है वही सब लोग फतवेबाज होते है ,,समझे जानम
,,,,,अख्तर
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