आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

20 मई 2015

जज़्बा मुस्कुराता है

कदम जब चूम ले मंज़िल तो जज़्बा मुस्कुराता है
दुआ लेकर चलो माँ की तो रस्ता मुस्कुराता है
किताबोँ से निकलकर तितलियाँ ग़ज़लेँ सुनाती हैँ
टिफिन रखती है मेरी माँ तो बस्ता मुस्कुराता है
सभी रिश्ते यहाँ बर्बाद हैँ मतलब परस्ती से
मगर सदियोँ से माँ-बेटे का रिश्ता मुस्कुराता है।
सुहब उठते ही जब मैँ चूमता हूँ माँ की आँखोँ को
ख़ुदा के साथ उसका हर फरिश्ता मुस्कुराता है
मेरी माँ के बिना मेरी सभी ग़ज़लेँ अधूरी हैँ
अगर माँ लफ़्ज़ शामिल हो तो किस्सा मुस्कुराता है
दिया था जो उसे हामिद ने मेले से कभी लाकर
अमीना की रसोई मेँ वो चिमटा मुस्कुराता है।
वो उजला हो के मैला हो या मँहगा हो के सस्ता हो
ये माँ का सर है इस पे हर दुपट्टा मुस्कुराता है
फरिश्तोँ ने कहा आमाल का संदूक क्या खोलेँ
दुआ लाया है माँ की, इसका बक्सा मुस्कुराता है।.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...