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30 मई 2015

में आज बहुत कुछ लिख कर हिंदी पत्रकारिता की हिंदी नहीं करना चाहता

आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है ,,में आज बहुत कुछ लिख कर हिंदी पत्रकारिता की हिंदी नहीं करना चाहता ,,लेकिन गौरव की बात यह है के उदन्त मार्तण्ड से लेकर गांधी ,,मैथिली ,,प्रेमचंद सभी ने तो इस हिंदी हिन्दी पत्रकारिता से अंग्रेज़ों का मुक़ाबला कर उन्हें खदेड़ दिया ,,अफ़सोस इस बात का ह के हिंदी से जुड़े पत्रकार लेखक हिंदी को आज भी संवेधानिक भाषा होने पर भी देश की जुबां नहीं बना सके ,,कर्नाटक ,,आंध्रा ,,केरल ,,,गुजरात ,,,बांग्ला ,, सभी जगह तो ज़ुबानों को जोड़ने के लिए अंग्रेज़ी की ज़रूरत है अंग्रेजी पुरस्कृत है तो हिंदी तिरस्कृत है ,,,आज इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के हालात गुलामी की तरफ है इनकी चारण भाट नौकरी हो गई है तो हिंदी पत्रकारिता विगापनदाताओं की गुलाम है ,,,,पुरुषार्थ बढ़ाने की दवा बिकवाने का विज्ञापन एजेंट बने है कोई पत्रकारिता की प्राथमिकताएं त्याग कर मेले लगवा रहा है तो कोई खलकूद कर रहा है कोई आतिशबाज़ी कर रहा है ,,हिंदी पत्रकारिता की गुणवत्ता बढ़ाने हिंदी दिवस पर हिंदी समाचार पत्र ,,पत्रकारों के संगठन कोई कार्यक्रम ,,सेमिनार ,,वैचारिक मंथन ,,पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिए अच्छे काम करने वालों की होसला अफ़ज़ाई कार्यक्रम नहीं कर रहे है ,,सरकार तो हिंदी पत्रकारिता का गला दबा देना चाहती है इसलिए सुचना केंद्र ,,सुचना मंत्री ,,सरकार के इंफोर्मेशन विभाग से तो इस दिवस पर किसी कार्यक्रम की उम्मीद करना भी बेमानी सा लगता है ,,लेकिन अफ़सोस होता है ,,जब हिंदी की चिंदी होते देखी जाती है भारत को इणिडया कहते हुए सुना जाता है ,,,हिंदी को भुलाकर सभी जगह अंग्रेजी भाषा का उपयोग होता है ,,हिंदी पत्रकारिता से जुड़े पत्रकारों को हिक़ारत की नज़र से देखा जाता है और इन अख़बारों में हिंदी से जुड़े लोगों की खबरे कम ,,नेताओ और अधिकारीयों की चमचागिरी खबरे और विज्ञापन ज़्यादा होते है ,,,फिर भी हिंदी पत्रकारिता कई मायनों में गरीबों की हमदर्द उनकी आवाज़ उनके इन्साफ की कड़ी साबित हुई है ,,सोशल मिडिया पर हिंदी पत्रकारिता विविध आयाम स्थापित कर रही है कुछ सियासी अपवादों को छोड़ दे तो यक़ीनन सोशल मिडिया जिसकी हिंदी हम आज तक नहीं पचा पाये है जिसका हिंदी नाम हम नहीं दे पाये है इस मिडिया में हिंदी पत्रकारिता और खबरचियों का महत्व बढ़ता जा रहा है ,,, आपको याद होगा अभिषेक सिंघवी की सीडी कांड ,,,महिपाल मदेरणा का काण्ड हिंदी पत्रकारिता ने ठंडे बस्ते में बंद कर दी थी लेकिन सोशल मिडिया ने इसे हिंदी में उजागर कर इन मामलों की पोल खोली और बिकाऊ पत्रकारों को भी आखिर मजबूरी में फिर खबर बनाना पढ़ी आखिर सोशल मिडिया हिंदी पत्रकारिता ज़िंदाबाद हो गई ,,इसलिए में कहता हूँ हिंदी पत्रकारिता के साथ अब हिंदी सोशल मिडिया पत्रकारिता दिवस भी मनाया जाना चाहिए ,,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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