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01 मई 2015

प्रेम के खातिर नाखूनों से खोदी झील फिर नहीं मिली प्रेमिका तो दे दी थी जान

प्रेम के खातिर नाखूनों से खोदी झील फिर नहीं मिली प्रेमिका तो दे दी थी जान
उदयपुर. माउंटआबू में रविवार से समर फेस्टिवल शुरु हो रहा है। माउंटआबू इस फेस्टिवल के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यहां आने वाले सैलानियों के बीच यहां की नक्की झील अपनी खूबसूरती के लिए फेमस है। इस झील की कहानी बेहद रोचक है जो राजस्थानी लोक गीतों और कहानियों में भी सुनने को मिलता है। कहते हैं माउंट आबू की हसीन वादियों में एक प्रेमी ‘रसिया बालम’ ने अपने प्यार की खातिर नाखूनों से ही झील को खोद डाला था। रसिया बालम माउंट आबू में मजदूरी करने के लिए आया था और उसने वहां पर कुंवारी कन्या (स्थानीय राजकुमारी) को देखा और उसे देखते ही प्यार हो गया। कुछ ऐसा ही हाल कुंवारी कन्या का भी हुआ। धीरे-धीरे ये प्यार परवान चढ़ने लगा।
बताया जाता है कि स्थानीय राजा ने अपनी कुंवारी कन्या की शादी के लिए एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि जो भी इंसान एक रात में झील खोदेगा उसकी शादी राजकुमारी से कर दी जाएगी। रसिया बालम ने हंसते-हंसते शर्त को स्वीकार कर दिया और झील को अपने नाखूनों से खोदना शुरू कर दिया।
इधर, कुंवारी कन्या की मां को यह विवाह प्रस्ताव किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था। कुंवारी कन्या की मां ने इस शर्त को पूरा होने से रोकने के लिए छल-कपट का सहारा लिया। रसिया बालम भोर होने से पहले झील की खुदाई कर जैसे ही कुंवारी कन्या के पिता के पास जाने के लिए निकला, वैसे ही कुंवारी कन्या की मां ने मुर्गे का रूप धारण कर कूकडू-कू की बांग दे दी। रसिया बालम ने इस मुर्गे की बांग को भोर की घोषणा मान ली और निराश होकर वहीं पर अपने प्राण त्याग दिए। लेकिन मरते-मरते वो कुंवारी कन्या की मां के मायाजाल को समझ गया और उसे श्राप दे दिया। श्राप देते ही कुंवारी कन्या की मां भी उसी जगह पर पत्थर की मूर्ति बन गई।
यहां भगवान राम ने प्राप्त की थी शिक्षा

पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वही स्थल है, जहां महान ऋषि वशिष्ठ रहा करते थे। कहा जाता है यहीं भगवान राम ने अपने दोनों भाइयों समेत शिक्षा ली थी। भगवान राम से जुड़े कई ऐतिहासिक प्रमाण यहां आज भी मौजूद है। माउंट आबू के घने जंगलों में महर्षि वशिष्ठ आश्रम बसा है। इस आश्रम में जाने के लिए आपको 450 सीढ़ियों से नीचे उतरना होता है।

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