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21 जनवरी 2015

राजस्थान के सभी जिला न्यायिक अधिकारीयों ने राजथान हाईकोर्ट के निर्देशों पर वकीलों द्वारा किये गए कार्यस्थगन के खिलाफ निगरानी के तहत कार्य शुरू रखने की ठानी है

कोटा सहित राजस्थान के सभी जिला न्यायिक अधिकारीयों ने राजथान हाईकोर्ट के निर्देशों पर वकीलों द्वारा किये गए कार्यस्थगन के खिलाफ निगरानी के तहत कार्य शुरू रखने  की ठानी है ,,राजस्थान हाईकोर्ट के परिपत्र का हवाला देते हुए कोटा जिला जज ने कोटा के सभी अधीनस्थ न्यायिक अधिकारीयों को पाबंद किया है के वकीलों के किसी भी कार्यस्थगन में सहयोग ना करे और सिविल प्रक्रिया संहिता ,,दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत अपने  कार्य निपटाएं ,,साथ ही किये गए कार्य को भी परिपत्र में संलग्न पर्फोर्मे पर भरकर भेजने के निर्देश दिए गए है ,,,नो दिसम्बर दो हज़ार चोवदाह के इस परिपत्र से यूँ तो वकीलों का कोई लेना देना नहीं है लेकिन यह एक टकराव की शुरुआत है ,,,इस मामले में राजस्थान के वकील ,, बार कोंसिल ऑफ़ राजस्थान चुप्पी साधे हुए है ,,,,राजस्थान हाईकोर्ट को वकीलों के खिलाफ इतना तल्ख क्यों होना पढ़ा है ,,यह एक डिबेट का विषय है ,,एक वकील जो वकालत करता है ,,वही वकालत के अनुभव के बाद मजिट्रेट ,,फिर जज ,,फिर हायकोर्ट सुप्रीमकोर्ट जज बनता है ,,लेकिन वकीलों के परिवार में किसी मोत पर उनके परिवार मृत्तात्मा को श्रद्धांजलि देने का हक़ भी अगर छीन लिया जाये तो वकीलों को शायद चुप नहीं रहना चाहिए ,,,रहा सवाल दण्ड प्रक्रिया संहिता और सिविल प्रक्रिया संहिता की शुद्ध पालना को तो अगर राजस्थान के वकील इस पालना कराने को अड़ गए तो शायद सभी  अदालतों का कम ठप्प हो जाएगा वैसे वकीलों का  कर्तव्य है के वोह क़ानून की पालना शत प्रतिशत करे और इस प्रक्रिया के तहत चेक अनादरित मामले ,,घरेलु हिंसा मामले या कोई और विशेष क़ानून जिसमे छ माह ,,तीन माह या निर्धारित समयावधि में पूर्ण मुक़दमे के निस्तारण की बाध्यता है अगर वकील क़ानूनी रूप से हक़ जताते हुए पास पास की तारिीखो पर अड़ जाए तो अदालतों का काम करना मुश्किल हो जाए क्योंकि यही अदालते वक़्त का हवाला देकर चार चार महीने की तारीखे  देती है ,,,अगर यही वकील अपीलों में ,,,, न्यायिक अभिरक्षा में चल रहे अभियुक्तों की सुनवाई के लिए चोवदाह चोवदाह दिनों की तारीखों पर क़ानूनी आवश्यकता बताकर दिन ब दिन सुनवाई करवाये तो फिर जज क्या करेंगे ,,एक अदालत में एक तरफ टाइप होता है ,,दूसरी तरफ बयान ,,तीसरी तरफ बहस की सुनवाई होती है जबकि दण्ड प्रक्रिया संहिता और सिविल प्रक्रिया संहिता में स्पष्ठ लिखा है के जज ही सारे काम बंद कर  न्यायालय की भाषा में बयांन लिखवायेगा ,,इस मामले में भारत  उच्चतम न्यायलय के भी दिशा निर्देश है और खुद राजस्थान हाईकोर्ट की दिग्दर्शिका में हाईकोर्ट द्वारा जारी परिपत्र प्रकाशित कर निर्देशित किये गए है ,,,,,अदालतों में वक़्त पर रिपोर्ट नहीं होना ,,सम्मन जारी नहीं होना ,,वारंट की तामील नहीं होना ,,गवाह नहीं आना ,,,,सम्मन वारंट अदम तामील में वापसी नहीं आने पर भी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करने से मुक़दमों के निस्तारण में समय लगता है ,,अदालतों में जज नहीं ,,,एक जज के पास दो दो ,,तीन तीन ,,,चार चार अदालतों के काम है और मुक़दमों के निस्तारण की देरी में वकीलों के सर ठीकरा अपमानकारी बात है जबकि वकील एक अदालत में अदालतों को को ऑपरेट करते हुए एक वक़्त में बयान ,,सुनवाई ,,दूसरे बयांन होने पर भी चुप्पी साधकर अदालतों का सम्मान आकर उन्हें मुक़दमों के निस्तारण में मद्दद करता है ,,जब अदालते अपने क़ानून से चलना  चाहती है ,,तो वकीलों को भी क़ानून के तहत  दण्ड प्रक्रिया  संहिता और सिविल प्रक्रिया संहिता के विशिष्ठ प्रावधानों के तहत अदालत में एक वक़्त में केवल एक काम की प्रक्रिया अपनाये तो पक्षकारों के साथ भी न्याय होगा और परिपत्र की भी शुद्ध रूप से पालना की जाकर जजों के निर्देशों की पलना कर उन्हें इस परिपत्र की आवश्यकता का पता चल जाएगा ,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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