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21 जनवरी 2015

लाडपुरा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याक्षी रहे नईमुद्दीन गुड्डू को गिरफ्तार करवाने के पीछे पढ़ गए

कोटा में कुछ षड्यंत्रकारी राजनितिक रंजिश के चलते लाडपुरा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याक्षी रहे नईमुद्दीन गुड्डू को गिरफ्तार करवाने के पीछे पढ़ गए है ,,,राजनीतिक एक मुक़दमे में राज बदलते ही दुश्मन दुश्मन पार्टी भूल कर एक हो गए है और अब अख़बारों का सहारा लेकर प्रदर्शन आंदोलन तक बात जा पहुंची है ,,,आज कलेक्ट्रेट पर नईमुद्दीन गुड्डू की गिरफ्तारी की मांग को लेकर प्रदर्शन हुआ ,,सभी जानते है परदे के पीछे कौन है ,,प्रशासन भी जानता है के दो दर्जन से भी ज़्यादा सेलेब्रेटरी के खिलाफ कार्यवाही विचाराधीन है लेकिन उन्हें ना तो गिरफ्तार किया जा रहा है ,,ना ही उनके खिलाफ कोई अख़बार ने खबर छापी है ,,नईमुद्दीन गुड्डू के खिलाफ पीछा करके खबर छापने का मंतव्य सभी जानते है ,,,,नईमुद्दीन ने अपराध किया है तो निश्चित तोर पर उन्हें सज़ा भी मिलना चाहिए उन्हें गिरफ्तार भी होना चाहिए लेकिन ज़रा उनकी गिरफ्तारी की मांग करने वाले क़ानूनी पहलु तो देख ले ,,एक तो उनकी तरह जितने भी मामलों में गिरफ्तारी के आदेश पढ़े है पुलिस क्या उन सभी आज सत्ता में आये लोगों और दूसरे लोगों को भी नईमुद्दीन गुड्डू के साथ गिरफ्तार करेगी कई मामलों में तो पत्रावलियां गिरफ्तारी के आदेश के धुल चाट रही है ,,वैसे भी दिनांक दो जुलाई दो हज़ार चोवदा में सुप्रीमकोर्ट के जज चन्द्रमुरली कुमार और पिनाकी चन्द्र्घोष ने अपील क्रमांक 1277 / 2014 अरनेश कुमार बनाम स्टेट बिहार वगेरा मामले में पुलिस और सरकारों ,,मजिस्ट्रेटों को पाबंद किया है के जिस मामले में सात वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान हो उन्हें दण्डप्रक्रिया स्नहीनता की धारा 41 के विधिक प्रावधानों के तहत पुख्ता अनुसंधान ,,वरिष्ठ अधिकारीयों के आदेश ,,माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट की सहमति के बाद ही गिरफ्तारी हो सकती है ,,वैसे तो पुलिस चाहे जो कर सकती है लेकिन कोटा की पुलिस किसी दबाव में आने वाली नहीं है ,,,किसी पक्षपात की कार्यवाही नहीं करती है ,,बदले की भावना से ,,राजनितिक दुर्भावना से कार्यवाही नहीं करती है क्योंकि इसके लिए हुक्म चाहे सरकार या मंत्री का हो लेकिन क़लम तो पुलिस की होती है वाहवाही भी उस हस्ताक्षर करने वाले पुसलीकर्मी की तो बुराई भी उस हस्ताक्षर करने वाले पुलिसकर्मी की ,,तो दोस्तों पहली बार सत्ता परिवर्तन के बाद जो प्रक्रिया सामने आई है ,,पुराने स्टोर में पढ़े वारंट ,,पुराने पत्रावलियां भी हिसाब मांगती है ,,,,गिरफ्तारी ही अगर करना हो तो फिर क्रमबद्ध सबसे पुराने मामलों से शुरू हो कर नए राजनितिक मामलों में होना चाहिए ,,क्या ऐसा हो सकेगा ,,,,,अख़बार जो इस मामले में पक्षकार बन गए है क्या वोह कभी निष्पक्ष होकर पुराने वारन्टों की खोजबीन कर निष्पक्ष खबर के सूत्रधार लोगों की गिरफ्तारी करने के लिए खबर का प्रकाशन कर सकेंगे ,,,,,,,,,,नहीं ना ,,तो फिर क़ानून अपना काम करेगा ,,,,,,,,,,,,उसे करने दो ,,यूँ ही बेकार पक्षकार बनकर निजी रूप न दिया जाए तो शायद बेहतर होगा और एक स्वच्छ स्वतंत्र परम्परा भी क़ायम रहेगी ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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