खुशनुमा लम्हे
होते तो है है
लेकिन खिसकते है
लरज़ते हाथों से
मेने रोका है
अपने दिल
अपने जज़्बात
अपने अरमान
अपने ख्यालात में
तेरे मेरे बीच के
गुज़रे हुए
उन खुशनुमा लम्हों को
जो फिसलते जा रहे थे ,,,,अख्तर
होते तो है है
लेकिन खिसकते है
लरज़ते हाथों से
मेने रोका है
अपने दिल
अपने जज़्बात
अपने अरमान
अपने ख्यालात में
तेरे मेरे बीच के
गुज़रे हुए
उन खुशनुमा लम्हों को
जो फिसलते जा रहे थे ,,,,अख्तर
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