फोटो: हनुमान मंदिर में नमाज अता करती दो ईरानी महिलाएं।
आगरा. ताजमहल का दीदार करने आई ईरानी महिलाओं ने गुरुवार को
ताज व्यू चौराहे के पास हनुमान मंदिर में नमाज अता की। इस दौरान वहां फूल
बेचने वाले ने उन्हें फर्श पर बिछाने के लिए अखबार दिया। यही नहीं, मंदिर
के पुजारी ने भी उनकी मदद की। इसके बाद इस मामले को लेकर बहस छिड़ गई।
हिंदू-मुस्लिम धर्म के लोग अपने-अपने तर्क दे रहे हैं। इसमें इस्लामी
विद्वान मौलाना नदीमुल वाजदी का कहना है कि किसी भी पाक-साफ स्थान पर
नमाज अता की जा सकती है। वहीं देवबंदी उलेमाओं ने भी इसे जायज ठहराया है।
ईरानी महिलाएं गुरुवार को ताजमहल का दीदार करने के लिए आगरा पहुंची
थी। वह इसके बाद ताज व्यू चौराहे के पास पहुंची। शाम को अशर की नमाज का
वक्त हो गया। उसने आस-पास मौजूद लोगों से फारसी भाषा में ही मस्जिद के लिए
पूछा, लेकिन कोई उनकी बात नहीं समझ सका। कुछ देर वह भटकती रहीं। इसके बाद
दोनों को हनुमान मंदिर दिखा। मंदिर के बाहर फूल बेचने वाले श्रवण इशारों से
समझ गया कि उन्हें नमाज पढ़ना है। उसने महिलाओं को वहीं नमाज अता करने को
कहा।
कोई नहीं समझ पा रहा था दोनों की बात
श्रवण ने बताया कि महिलाओं को बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि मंदिर में
नमाज अता करने के लिए जगह मिलेगी। जब उसने नमाज के लिए इशारा किया तो
महिलाएं बेहद खुश हुईं। महिलाओं ने इशारा करके फर्श पर बिछाने को अखबार
मांगा। उसने बताया कि उसने अखबार दिया और इसी को बिछाकर महिलाओं ने नमाज
अता की।
पुजारी ने कहा- मंदिर सबके लिए है
मंदिर के पुजारी रामब्रज शास्त्री कहते हैं कि इबादत के तरीके
भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन भगवान और अल्लाह एक हैं। वह ईरानी
पर्यटकों का नाम भी नहीं जानते हैं। मंदिर सबके लिए है। धर्म के नाम पर
यहां पर किसी को आने और इबादत करने से नहीं रोका जाना चाहिए। यही उन्होंने
किया। नमाज जिस तरफ से महिलाएं अता कर रही थीं, उस ओर मंदिर का पट बंद था।
नमाज अदा करने को लेकर फतवों के शहर देवबंद के उलेमाओं का कहना है कि पूरी कायनात खुदा की देन है। नमाज अता करने के लिए जमीन की कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिए और न ही है। उस किसी भी स्थान पर नमाज अता की जा सकती है, जो पाक साफ हो और नमाज अता करने वाले स्थान के आसपास किसी भी तरह की गंदगी न हो।
ईरानी पर्यटकों द्वारा आगरा के हनुमान मंदिर में नमाज अता करने को
देवबंदी उलमा ने जायज करार दिया है। सहारनपुर स्थित देवबंद दारुल उलूम वक्फ
के वरिष्ठ उस्ताद मौलाना मुफ्ती आरिफ कासमी का कहना है कि अगर नमाज पढ़ने
वाले के सामने किसी तरह की कोई तस्वीर न हो तो ऐसी सूरत में कहीं पर भी
नमाज पढ़ी जा सकती है।
नमाज अदा करने को लेकर फतवों के शहर देवबंद के उलेमाओं का कहना है कि पूरी कायनात खुदा की देन है। नमाज अता करने के लिए जमीन की कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिए और न ही है। उस किसी भी स्थान पर नमाज अता की जा सकती है, जो पाक साफ हो और नमाज अता करने वाले स्थान के आसपास किसी भी तरह की गंदगी न हो।
उलेमाओं का कहना है कि किसी भी धर्म में ईश्वर का नाम लेने के लिए
सबसे पहले सफाई पर ही विशेष जोर दिया गया है। सभी धर्मों में उन स्थानों पर
साफ-सफाई पर विशेष तौर पर जोर दिया जाता है, जिन स्थानों पर इबादत की जाती
है।
इस्लामी विद्वान मौलाना नदीमुल वाजदी और जामियातुल अनवरिया के मोहतमिम मौलाना नसीम अख्तर शाह कैसर ने भी ऐसी ही बातें कहीं।
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