आज तुमने
ना जाने क्यों
मेरी चाहत पर
भरोसा नहीं क्या ,,
बढ़ी मासूमीयत से पूंछा
आजकल
मुझे इग्नोर क्यों करते हो ,,,
अरे ज़ालिम
खुद से तो पूंछो
तुम्ही मेरी ज़िंदगी हो
तो क्या कोई यूँ ही
ज़िंदगी को इग्नोर कर सकता है
ना जाने क्यों
मेरी चाहत पर
भरोसा नहीं क्या ,,
बढ़ी मासूमीयत से पूंछा
आजकल
मुझे इग्नोर क्यों करते हो ,,,
अरे ज़ालिम
खुद से तो पूंछो
तुम्ही मेरी ज़िंदगी हो
तो क्या कोई यूँ ही
ज़िंदगी को इग्नोर कर सकता है
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