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मैंने कहा धर्म मनुष्य के लिए है मनुष्य धर्म के लिए नहीं हैं
उनकी भवनाएँ आहत हो गयीं
मैंने कहा सभी धर्म एक जैसे अच्छे – बुरे हैं
वे बहुत नाराज़ हुए
जब मैंने कहा ईश्वर में आस्था नहीं रखने वाले भी खुशहाल हैं और नैतिक भी
उन्होंने मान लिया मैं पथ-भ्रष्ट हो गया हूँ
स्वर्ग – नर्क कल्पना है
जन्म से पहले और मृत्यु के बाद कुछ भी नही है
और सभी धार्मिक किताबें मनुष्य रचित हैं
शाप जैसी कोई चीज होती वे मुझे भष्म कर चुके होते.
धर्म स्त्रियों के साथ न्यायसंगत व्यवहार नहीं करते
और अपने लोगों में भी भेद बनाएं रखते हैं
मठ, किले हैं जिसमें राजा की तरह रहता है धर्माधिकारी
अपने अनुयायियों पर कड़ी नज़र रखते हुए
मेरा ऐसा कहते ही
वे गुस्से से कांपने लगे
और मेरे चरित्र हनन के लिए भेज दिए गए दसों दिशाओं में हरकारे
मैंने कह ही दिया धर्म नहीं होते
तो शायद बेहतर होती दुनिया
उन्होंने मेरे खिलाफ धर्मयुद्ध छेड़ दिया.
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