आपका-अख्तर खान

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23 सितंबर 2014

जिस दरख़्त को

फेंका था जिस दरख़्त को कल हमने काट के ,
पत्ता हरा फिर उस से निकलने लगा है यार !

उठ और अपने होने का कुछ तो सबूत दे ,
पानी तो अब सरों से निकलने लगा है यार !!

(राजेंद्र नाथ रहबर)

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