फेंका था जिस दरख़्त को कल हमने काट के ,
पत्ता हरा फिर उस से निकलने लगा है यार !
उठ और अपने होने का कुछ तो सबूत दे ,
पानी तो अब सरों से निकलने लगा है यार !!
(राजेंद्र नाथ रहबर)
पत्ता हरा फिर उस से निकलने लगा है यार !
उठ और अपने होने का कुछ तो सबूत दे ,
पानी तो अब सरों से निकलने लगा है यार !!
(राजेंद्र नाथ रहबर)
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