आपका-अख्तर खान

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24 सितंबर 2014

क्या यही है प्यार

क्या यही है प्यार तुम्हारा ?
आलिँगन, चुम्बन और स्पंदन ,
कुछ फूलते पिचकते अंगों का भौंडापन !
तुम टटोलते रहे
मेरे जिस्म के हर हिस्से को . . ,
क्या कभी मेरे दिल को भी टटोल पाए तुम ?
तुम उलझे रहे मेरी साड़ी की सिलवटों में ,
क्या मेरी उलझी जिंदगी को सुलझा पाए तुम ?
नारी देह की ज्ञान भले ही हो तुम्हें !
नारी मन को समझने में अब भी तुम कच्चे हो ,
हाँ प्यार के मामले में अब भी तुम बच्चे हो . . !

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