कल
देश देश भर में शिक्षक दिवस मखोल सिर्फ मखोल बन कर रह गया ,,,प्रधानमंत्री
ने शिक्षको के सम्मान का हक़ छीनकर उन्हें बंधक और बधुआ मज़दूर बना दिया तो
राजस्थान में शिक्षको की कार्यशैली की उनके सम्मान समारोह में खिल्ली उढ़ाकर
इस समारोह को अपमान समारोह में बदल दिया गया ,,,,,सरकार ने जो सोचा ,,जो
कहा हो सकता है वोह कुछ हद तक सही हो ,,सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती
,,सरकारी स्कूल के बच्चे टॉपर नहीं होते
,,सरकारी स्कूल के बच्चे आई ऐ एस नहीं बनते ,,सरकारी स्कूल के टीचरों को
अधिकारी साथ नहीं रखते ,,लेकिन इसके पीछे कारण क्या है यह हमे खोजना होंगे
,,,,,स्कूलों में शिक्षकों की कमी ,,स्कूलों में बच्चों के नामांतरण में
कमी ,,,,,स्कूल भवनों में सुविधाओं का अभाव ,,,ज़रा सोचिये एक अध्यापक पढ़ाई
छोड़ कर भैंसे ,,गांए गिनने में लगा दिया जाता है ,,,सर्वे में लगा दिया
जाता है ,,,,,चुनाव में लगा दिया जाता है ,,बीच बीच में जन गणना और दूसरी
सरकारी योजनाओं में शिक्षको को झोंका जाता है ,,,शिक्षको से सियासी लोग
अपनी मतदाता सूचि तय्यार करवाते है ,,पोषाहार के नाम पर स्कूलों में खाना
बनवाना ,,खिलाना उनकी ज़िम्मेदारी है ,,,,बाबू का काम शिक्षक करे ,,शिक्षा
का काम जब करने लगे तो स्टेडियम बच्चे ले जाओ ,, पर्यावरण का मामला हो
,,,तम्बोकु निषेध का मामला हो ,,,,पोलियों का मामला हो रैली में शिक्षको को
लेजाओ ,,कोनसा काम है जो हमारे शिक्षको से नहीं करवाते और फिर मुक़ाबला उन
निजी स्कूलों से जहां एयरकंडीशन भवन है ,,क्लास है ,,,लेबोरेटरी है
,,,लाइब्रेरी है ,,शिक्षक पर पढ़ाई के अलावा कोई दूसरी ज़िम्मेदारी नहीं
,,,सिर्फ पढ़ाना पढ़ाना ,,,सरकारी स्कूलों में डफर यानी सबसे कमज़ोर लड़के को
जबरन स्कूल बुलाया जाता है ,,पढ़ाया जाता है ,,फिर सरकार ,,निजी स्कूलों का
स्तर सुधार कर उन निजी स्कूलों के प्रति बच्चो का आकर्षण बढ़ाने के लिए
खुद सरकारी स्कूलों को बंद कर देती है ,,समानीकरण करती है ,,स्कूलों की
सुविधाये छीन लेती है ,,इतना ही नहीं एक जर्जर ईमारत में ,,एक पेड़ के निचे
पढ़ाने वाले शिक्षक से ऐसी में सिर्फ और सिर्फ इंटेलिजेंट बच्चे जो बाहर
ट्यूशन भी जाकर पढ़ते है उनसे तुलना करना बेवकूफी ही कही जायेगी ,,,,,सरकार
कहती है पांचवी तक सभी को पास करो ,,फिर कहती है आठवी तक कोई फेल नहीं होना
चाहिए ,,फिर दसवी तक कहती है के पास करो ,,,सरकारी स्कूलों में जो बच्चो
के अधिकृत नंबर जाते है वोह ईमानदारी से कम जाते है जबकि प्राइवेट स्कूलों
के प्रेक्टिकल और स्कूल के नंबरों का अंतर इस फ़र्क़ को समझाता है ,,,अगर
सरकार को मुक़ाबला करना है और शिक्षको को सिर्फ शिक्षक बनाये ,,,बाबू
,,चपरासी ,,सड़को पर सर्वे करने वाला कर्मचारी नहीं ,,,,सुविधाये दे
,,,,,निजी स्कूलों के बराबर सुविधाये नहीं तो कमसेकम आधी सुविधा तो दे
,,,,स्कूलों में परिणाम में सख्ती हो जो पढ़े पास नहीं तो उसे फेल किये
जाने का नियम फिर से लागू किया जाए ,,वेतन की बात करते है ,,,,हमारे कोटा
में कोचिंग में एक शिक्षक दस लाख रूपये प्रतिमाह कमाता है ,,,,जो अधिकारी
,,जो मंत्री प्राइवेट स्कूलों में घुसने की कोशिश नहीं कर पाते ,,,अगर
घुसने की कोशिश करते है तो यह निजी स्कूल वाले इन्हे दरवाज़ा खोले बगैर
बाहर से ही अपमानित कर भगा देते है वोह निजी स्कूलों के गुलाम और प्रचारक
बने है ,,सरकार में बैठे मंत्री ,,सरकार में बैठे अधिकारी पहले खुद सुधरे
,,व्यवस्थाये सुधारे फिर बात होगी लेकिन जब बिना पढ़े लिखे लोगों को देश भर
की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी देते हुए मंत्री बना दिया जाए ,,शिक्षा विभाग का
कार्यभार अनपढ़ मंत्री संभालेगा ,,,शिक्षक दिवस पर शिक्षको के स्थान पर
प्र्धानमन्री बच्चो को सम्बोधित करेंगे और शिक्षक इस दिवस पर बंधुआ मज़दूर
की तरह से हाथ बांधे व्यवस्थाओं में लगे रहेंगे तो भाई ऐसी व्यवस्था का तो
भगवान ही मालिक है लेकिन शिक्षको को अब आत्मसम्मान के लिए खुद संघर्ष करना
होगा लड़ाई लड़ना होगी ,,,,,,,,,,अख्तर
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