आपका-अख्तर खान

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29 अगस्त 2014

कहाँ हो मसरूफ तुम

कहाँ हो मसरूफ तुम
मेरी धड़कनो को
मेरी साँसों को
मेरे रोम रोम को
मेरी आस को
मेरे इन्तिज़ार को
मेरी ज़िंदगी को
मुझे मेरी ख्वाहिशोः को
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारा ही इन्तिज़ार है
जान निकलने को
दिल बेक़रार है
कहाँ मसरूफ हो तुम
कहाँ मसरूफ हो तुम
मुझ से बढ़कर
पहले कोई और
फिर मसरूफियत तुम्हारी
वाह वाह
मुझ से अच्छी तो
मसरूफियत तुम्हारी ,,,,

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