बीमारी से हारे हुए इंसान
की सोच उसकी ज़ुबानी ,,,,,,,
मेरी मासूम बिटिया
रोज़ मुझ से लिपट कर
आँखों में डब डब आंसू लेकर
पूंछती है
पापा आप उदास क्यों हो
पूंछती है
पापा आप दुबले क्यों हो रहे हो
उस मासूम को क्या पता
उसके पापा बस अब
चंद दिनों के ही महमान है ,,
यक़ीनन दिल कलेजे को आता है
मासूम को में रोज़ बहलाता हूँ
थोड़ा हंसाता हूँ
फिर अपने मिटटी में मिल जाने के
बुलंद इरादों को पूरा करने की
अंतिम योजना कारगर करने में
जुट जाता हूँ ,,,,,,,,,,
की सोच उसकी ज़ुबानी ,,,,,,,
मेरी मासूम बिटिया
रोज़ मुझ से लिपट कर
आँखों में डब डब आंसू लेकर
पूंछती है
पापा आप उदास क्यों हो
पूंछती है
पापा आप दुबले क्यों हो रहे हो
उस मासूम को क्या पता
उसके पापा बस अब
चंद दिनों के ही महमान है ,,
यक़ीनन दिल कलेजे को आता है
मासूम को में रोज़ बहलाता हूँ
थोड़ा हंसाता हूँ
फिर अपने मिटटी में मिल जाने के
बुलंद इरादों को पूरा करने की
अंतिम योजना कारगर करने में
जुट जाता हूँ ,,,,,,,,,,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)