फाइल फोटोः मद्रास हाईकोर्ट से बाहर अाते वकील।
नई दिल्ली. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सोमवार को संकेत
दिया कि उस जज का नाम जस्टिस अशोक कुमार है, जिनके बारे में सुप्रीम कोर्ट
के पूर्व जज और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मार्कंडेय काटजू ने
दावा किया है कि मनमोहन सरकार बचाने के लिए उन्हें भ्रष्ट होेने के
बावजूद तरक्की दी गई थी। काटजू के इस दावे पर सोमवार को संसद के दोनों सदनों में हंगामा हुआ और कार्यवाही स्थगित भी करनी पड़ी। काटजू ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि वर्ष 2002 में यूपीए सरकार
को गिरने से बचाने के लिए एक भ्रष्ट जज का कार्यकाल बढ़ाया गया था और
उन्हें मद्रास हाई कोर्ट में प्रमोशन भी दिया गया। काटजू ने लिखा है कि वह
यह खुलासा यह बताने के लिए कर रहे हैं कि देश में सिस्टम कैसे काम करता
है।
सोमवार को जब काटजू से पूछा गया कि उन्होंने जज का नाम क्यों सार्वजनिक नहीं किया और यह बात दस साल बाद क्यों सामने लाई तो काटजू बोले- अंग्रेजी में कहावत है बेटर लेट दैन नेवर। यह महत्वपूर्ण सवाल नहीं है कि दस साल बाद क्यों कहा, महत्वपूर्ण है कि जो बातें मैंने कही हैं वे सही हैं या नहीं? उस भ्रष्ट जज का नाम नहीं बताने के सवाल पर उन्होंने कहा, 'कुछ जिम्मेदारी मीडिया की भी है। मीडिया उस जज का नाम पता करे।'
उधर, प्रशांत भूषण ने एक टीवी चैनल को बताया कि जस्टिस अशोक कुमार को
जज बनाए जाने के विरोध में उन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की
थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब कॉलेजियम से नाम क्लीयर हो गया
तो कुछ नहीं हो सकता। भूषण ने कहा कि अर्जी इसी आधार पर दी गई थी कि जिस जज
के खिलाफ आरोप हैं उसे तरक्की कैसे दी जा सकती है?
काटजू ने ब्लॉग में ये लिखा है...
मद्रास हाईकोर्ट के एक एडिशनल जज थे जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई
आरोप लगे थे। इससे पहले उन्हें तमिलनाडु में सीधे जिला जज के तौर पर
नियुक्त किया गया था। उस दौरान उनके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट के अलग-अलग
पोर्टफोलियो वाले जजों ने कम-से-कम आठ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं, लेकिन
मद्रास हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ने अपनी कलम की ताकत से सभी
टिप्पणियों को खारिज कर दिया था। यही जज आगे चलकर मद्रास हाईकोर्ट में
एडिशनल जज बन गए। जब नवंबर 2004 में मैं मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस
बना,वह तब तक इसी पद पर थे। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इस जज को तमिलनाडु
के एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता का समर्थन प्राप्त था। मुझे बताया
गया कि डिस्ट्रिक्ट जज रहते हुए इस जज ने राज्य के एक बड़े नेता को जमानत
दी थी।
इन जज साहब की शिकायत मैंने तत्कालीन मुख्य न्यायधीश आरसी लाहोटी से
की और जज के खिलाफ एक गुप्त आईबी जांच कराने की गुजारिश की। कुछ हफ्ते बाद
जस्टिस लहोटी ने कहा कि जज के खिलाफ जो शिकायत मैंने की थी, वे सही पाई
गईं। आईबी को इस जज के करप्ट होने के पर्याप्त सबूत मिले।
दो साल पहले मैने सोचा था कि इन (मद्रास हाईकोर्ट के एडिशनल जज) को
आईबी की रिपोर्ट आने के बाद उनके पद से हटा दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ
और उन्हें अगले एक साल के लिए भी एडिशनल जज नियुक्त कर दिया गया। इस दौरान
6 एडशिनल जज को हाईकोर्ट का परमानेंट जज नियुक्त कर दिया गया।
मैंने इस बात को बाद में समझा कि यह आखिर यह कैसे हुआ। दरअसल सुप्रीम
कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के पांच
सबसे सीनियर जज होते हैं। जबकि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए तीन
सबसे सीनियर जजों की कॉलेजियम फैसला लेती है।
उस समय सुप्रीम कोर्ट के जज रहे 3 सीनियर जजों में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस लाहोटी,जस्टिस सबरवाल और जस्टिस रूमा पाल शामिल थीं। उस समय सुप्रीम कोर्ट की इस कॉलेजियम ने उक्त जज के खिलाफ आई आईबी की रिपोर्ट के आधार पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें आगे जज के तौर पर नियु्क्त ना किए जाने की सिफारिश केंद्र को भेजी थी।
उस समय सुप्रीम कोर्ट के जज रहे 3 सीनियर जजों में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस लाहोटी,जस्टिस सबरवाल और जस्टिस रूमा पाल शामिल थीं। उस समय सुप्रीम कोर्ट की इस कॉलेजियम ने उक्त जज के खिलाफ आई आईबी की रिपोर्ट के आधार पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें आगे जज के तौर पर नियु्क्त ना किए जाने की सिफारिश केंद्र को भेजी थी।
उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी और कांग्रेस इस गठबंधन सरकार में
शामिल सबसे बड़ी पार्टी थी। लेकिन उसके पास लोकसभा में अपना बहुमत नहीं था
वह बहुमत के लिए दूसरी छोटी पार्टियों पर निर्भर थी। पार्टी के यह बड़ा
सहयोगी दल तमिलनाडू से था जो इस भ्रष्ट जज के समर्थन में रहा। सरकार ने
कोलेजियम के 3 जजों की सिफारिश पर सरकार ने फैसला नहीं लिया।
यह जानकारी मुझे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
से मिली जब वे यूएन की सभा में शामिल होने न्यूयॉर्क जा रहे थे। यह
मुलाकात दिल्ली एयरपोर्ट पर हुई थी। पीएम ने मुझसे कहा कि तमिलनाडु की इस
पार्टी के एक मंत्री उस जज की नियुक्ति को आगे बढ़ाना चाहते हैं। यह वह
वक्त जब प्रधानमंत्री न्यूयॉर्क से लौटे तो तमिलनाडु की इस पार्टी ने उनकी
सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। क्योंकि सरकार ने उक्त जज की नियुक्ति को
आगे नहीं बढाया था। तमिलनाडु की इस राजनीतिक पार्टी के समर्थन वापस लेने
से मनमोहन सरकार संकट में आ गई थी,लेकिन पीएम से कांग्रेस के सीनियर नेताओं
से कहा कि वे चिंता न करें। सब कुछ मैनेज कर लिया जाएगा। यही मंत्री चीफ
जस्टिस लाहोटी से मिले और उन्हें कहा कि तमिलनाडु के इस एडिशनल जज की
नियुक्ती को आगे न बढ़ाए जाने से सरकार का संकट बढ गया है। इसके बाद चीफ
जस्टिस लाहोटी ने सरकार को एक पत्र लिखकर इस भ्रष्ट जज के टर्म को 1 साल और
आगे बढ़ाए जाने की अनुमति दी थी। मुझे इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि
सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की सिफारिश के बावजूद कैसे इस एडिशनल जज का
कार्यकाल एक साल और बढ गया जबकि उनके 6 बैचमेट जजों को स्थाई जज बना दिया
गया था।इस एडिशनल जज को उनकी नियुक्ति को एक साल और बढ़ाए जाने का लेटर चीफ
जस्टिस सबरवाल के कार्यकाल में सौंपा गया था।
अगले चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन के कार्यकाल में यह स्थाई जज नियुक्त
हुए लेकिन इस जज का ट्रांसफर दूसरे हाईकोर्ट में कर दिया गया था। मैं इन
जारी जानकारियों को जोड़कर आपको बताना चाहता हूं कि इस दौरान सिस्टम किस
तरह से काम कर रहा था। जबकि आईबी की रिपोर्ट को देखें तो उनके आधार पर इस
जज को आगे नियुक्ति नहीं दी जा सकती थी।
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