फाइल फोटो- पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (दाएं)
द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा है कि
शिरडी के साईं बाबा की पूजा करना गलत है। उन्होंने साईं बाबा को
हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मानने से भी इनकार किया है। उन्होंने कहा है
कि अगर ऐसा होता तो साईं बाबा को मुसलमान भी मानते, लेकिन उन्हें केवल
हिंदू ही मानते हैं। इसलिए उन्हें हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बता कर
गलत प्रचार किया जा रहा है। सरस्वती ने कहा कि साईं बाबा न भगवान हैं और न
ही गुरु। उन्होंने उनकी पूजा को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि साईं
बाबा की पूजा हिंदू धर्म को बांटने की साजिश है। उन्होंने यह भी कहा कि
साईं बाबा के नाम पर कमाई की जा रही है।
साईं बाबा को पूजा लायक नहीं मानने के पीछे शंकाराचार्य ने दी दो दलीलें:
स्वरूपानंद ने दलील दी- कहा जाता है कि पूजा अवतार या गुरु की जाती
है। सनातन धर्म में भगवान विष्णु के 24 अवतार माने जाते हैं। कलयुग में
बुद्ध और कल्कि के अलावा किसी अवतार की चर्चा नहीं है। इसलिए, साईं अवतार
नहीं हो सकते।
रही बात गुरु मानने की। तो गुरु वह होता है जो सदाचार से भरा हो,
लेकिन साईं मांसाहारी था, लोगों के खतना करवता था, पंडारक समाज की औलाद था
जो लुटेरा समाज था। ऐसे में वह हमारा आदर्श भी नहीं हो सकता।
राम मंदिर से जोड़ा
स्वामी स्वरूपानंद ने कहा कि अयोध्या में राम का मंदिर बनाने का जो
अभियान है, उससे ध्यान बंटाने के लिए साईं बाबा के नए-नए मंदिर बनाए जा
रहे हैं। करोड़ों रुपए जुटाए जा रहे हैं। जो काम भगवान राम के लिए होना
चाहिए, वह साईं के नाम पर हो रहा है।
ब्रिटेन की साजिश बताया
स्वरूपानंद ने कहा कि हमारे पास शास्त्र भी है और तर्क भी। इनके
आधार पर हम साईं का सच बता सकते हैं। उन्होंने कहा, 'भारत का राष्ट्रपति
वहां (शिरडी के साईं मंदिर) गया। ये कहा जाता है कि यह हिंदू-मुस्लिम एकता
का प्रतीक है। लेकिन ये प्रतीक तब होता जब मुसलमान भी मानते। मुसलमान तो
मानते नहीं हैं, फिर हम ही क्यों मानें। यह (प्रतीक मानने की बात) वहम है
जो समाज में फैलाया गया है। ये ब्रिटेन की तरफ से हो रहा है। वे चाहते हैं
कि भारत हिंदू प्रधान नहीं रहे।'
साईं ट्रस्ट की प्रतिक्रिया
साईं बाबा ट्रस्ट के पूर्व चेयरमैन जयंत ससाने ने कहा, 'स्वामी की
बात सरासर गलत है। बाबा शिरडी में 60 साल रहे। सारे धर्म के लोगों के लिए
उन्होंने काम किया। उन्होंने पूरी दुनिया और देश के लिए काम किया, न कि
किसी को लूटने का काम किया। जिस तरह से, जिस भाषा में स्वामी बात कर रहे
हैं वह सरासर गलत है। लोगों में भ्रम फैलाने की साजिश है।'
'हर हर मोदी, घर घर मोदी' का भी किया था विरोध
स्वामी स्वरूपानंद वही हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान 'हर
हर मोदी, घर घर मोदी' के नारे पर भी आपत्ति जताई थी। उन्होंने इस बारे में
संघ प्रमुख मोहन भागवत से भी बात की थी। स्वरूपानंद ने भागवत से कहा था,
'नारा तो 'हर हर महादेव' का होता है। क्या अब भगवान शिव की जगह मोदी की
फोटो लगेगी? भगवान की जगह मोदी को बैठा देंगे?' बाद में नरेंद्र मोदी ने समर्थकों से इस नारे का इस्तेमाल नहीं करने की अपील की थी।
1. साईं का जीवनकाल 1838-1918 तक माना जाता है। 1918 में विजयादशमी के कुछ दिन पूर्व साईं ने अपने परमप्रिय भक्त रामचंद्र पाटिल से विजयादशमी के दिन तात्या के मृत्यु की भविष्यवाणी की। साईं बाबा शिरडी की वायजाबाई को मां कहकर संबोधित करते थे और उनके एक मात्र पुत्र तात्या को छोटा भाई मानते थे। साईं ने तात्या की मृत्यु टालने के लिए उसे जीवन-दान देने का निर्णय लिया। 27 सितम्बर, 1918 से साईं के शरीर का तापमान बढने लगा और उन्होंने अन्न भी त्याग दिया। उनकी देह क्षीण हो रही थी, लेकिन चेहरे का तेज जस का तस था। 15 अक्टूबर, 1918 को विजयादशमी के दिन तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि सबको लगा कि वह अब नहीं बचेगा, लेकिन दोपहर 2.30 बजे तात्या के स्थान पर साईं अपनी देह त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए और तात्या बच गए। इसी वजह से विजयादशमी साईं का महासमाधि पर्व बन गया।
1. साईं बाबा रोज शाम को द्वारकामाई को दीपों से सजाते थे। इसके लिए वे गांव के दुकानदारों से तेल लते थे। एक बार दुकानदारों ने निश्चय किया कि अब मुफ्त में तेल नहीं देंगे। इस पर साईं बाबा ने सब दीपों में पानी भर दिया। फिर भी दीपक रात भर जलते रहे।
भक्तों के साथ खड़े साईं बाबा की एक प्राचीन तस्वीर
साईं बाबा का जन्म कब और कहां हुआ, इसकी निश्चित जानकारी नहीं है।
1854 इसवी में पहली बार उन्हें जब शिरडी में देखा गया, तो वह करीब 16 साल
के थे। वह नीम के पेड़ के नीचे समाधि में लीन थे। कुछ समय शिरडी में रहकर
वे कहीं चले गये। इसके कई वर्ष बाद वे चांद पाटिल की बारात के साथ फिर आये।
खण्डोबा मंदिर के पुजारी ने तब उनका स्वागत 'आओ साईं' कहकर किया। तब से
उनका यही नाम प्रसिद्ध हो गया। अब वे स्थायी रूप से शिरडी में रहने लगे।
उन्होंने एक हिंदू द्वारा निर्मित पुरानी मस्जिद में अपना ठिकाना बनाया और
उसे 'द्वारकामाई' नाम दिया। वे गांव में रोज भिक्षा लेने जाते और बहुत
सादगी से रहते थे।
मौत को लेकर तीन कहानियां
1. साईं का जीवनकाल 1838-1918 तक माना जाता है। 1918 में विजयादशमी के कुछ दिन पूर्व साईं ने अपने परमप्रिय भक्त रामचंद्र पाटिल से विजयादशमी के दिन तात्या के मृत्यु की भविष्यवाणी की। साईं बाबा शिरडी की वायजाबाई को मां कहकर संबोधित करते थे और उनके एक मात्र पुत्र तात्या को छोटा भाई मानते थे। साईं ने तात्या की मृत्यु टालने के लिए उसे जीवन-दान देने का निर्णय लिया। 27 सितम्बर, 1918 से साईं के शरीर का तापमान बढने लगा और उन्होंने अन्न भी त्याग दिया। उनकी देह क्षीण हो रही थी, लेकिन चेहरे का तेज जस का तस था। 15 अक्टूबर, 1918 को विजयादशमी के दिन तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि सबको लगा कि वह अब नहीं बचेगा, लेकिन दोपहर 2.30 बजे तात्या के स्थान पर साईं अपनी देह त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए और तात्या बच गए। इसी वजह से विजयादशमी साईं का महासमाधि पर्व बन गया।
2. साईं बाबा के पास एक ईंट थी, वे उस पर हाथ टिकाकर बैठते थे
तथा रात को उसे सिर के नीचे रखकर सो जाते थे। 1918 के सितम्बर में सफाई
करते समय एक भक्त के हाथ से गिरकर वह ईंट टूट गयी। बाबा जब भिक्षा से लौटे,
तो बोले, यह ईंट मेरी जीवनसंगिनी थी। अब यह टूट गयी है, तो मेरा समय भी
पूरा हो गया है। यह उनकी महासमाधि का स्पष्ट संकेत था। उन्होंने उस साल
विजयादशमी पर शरीर त्यागने की घोषणा की और उस दिन शरीर त्याग कर दिया।
3. नागपुर के एक भक्त बाबू साहिब बूटी ने बाबा के लिए शिरडी
में एक मंदिर और भवन बनाया। विजयादशमी (15 अक्टूबर 1918) को बाबा ने अपनी
एक भक्त श्रीमती लक्ष्मीबाई शिन्दे को आशीर्वाद स्वरूप नौ सिक्के दिये और
कहा, अब मेरा मन द्वारकामाई में नहीं लगता। अब मैं बूटी के बाड़े में जाना
चाहता हूं। यह कहकर दोपहर ढाई बजे बाबा ने शरीर छोड़ दिया। बूटी साहिब
द्वारा निर्मित बाड़े में ही उन्हें समाधि दी गयी।
चमत्कार की दो बातें
1. साईं बाबा रोज शाम को द्वारकामाई को दीपों से सजाते थे। इसके लिए वे गांव के दुकानदारों से तेल लते थे। एक बार दुकानदारों ने निश्चय किया कि अब मुफ्त में तेल नहीं देंगे। इस पर साईं बाबा ने सब दीपों में पानी भर दिया। फिर भी दीपक रात भर जलते रहे।
2. एक बार शिरडी में हैजे का प्रकोप हुआ। साईं बाबा चक्की पर
गेहूं पीसने लगे। यह देखकर चार महिलाओं ने बाबा से लेकर स्वयं पीसना शुरू
किया। जब पर्याप्त आटा हो गया, तो बाबा ने उसे गांव की सीमाओं पर छिड़कवा
दिया। हैजा गायब हो गया।
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