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09 मई 2014

कांग्रेस ने मानी हार? नहीं हुई कोर ग्रुप, चुनाव समिति की बैठक, वार रूम में भी शांति




नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव 2014 के नतीजे आने में कुछ ही दिन शेष हैं। चुनाव पूर्व हुए तमाम सर्वेक्षणों में कांग्रेस की हार बताई गई है। लगता है पार्टी ने भी इसे सच मान लिया है। चुनावी गहमागहमी के माहौल में भी पार्टी में सक्रियता नहीं दिख रही। अमेठी में पहली बार शर्मसार हुए कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में बनी चुनाव समन्वय समिति ने पिछले एक महीने में एक भी बैठक नहीं की है। कांग्रेस का कोर ग्रुप भी पिछले छह हफ्तों में एक भी बैठक नहीं कर पाया है। कांग्रेस के वार रुम में भी अब खामोशी दिखाई पड़ रही है। कांग्रेस ने अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान कई बड़ी गलतियां की जो अब कांग्रेस के लिए भारी पड़ती नजर आ रही हैं। अगर कांग्रेस ने ये गलतियां न की होतीं तो शायद आज कांग्रेस थोड़ी बेहतर स्थिति में होती। जानिए कांग्रेस से कहां पर चूक हुई।
आखिर कहां चू्क हो गई कांग्रेस से
  1. सबसे बड़ी गलती राहुल ने सरकार में शामिल न होकर की। अगर वो सोचते थे कि उनके पास विचार है तो उन्हें उसके साथ शुरुआत करनी चाहिए थी। 
  2. यूपीए को अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री को अधिक स्वतंत्रता देनी चाहिए थी, ताकि वो अर्थव्यवस्था, उदारीकरण, प्रशासन, पाकिस्तान से जुड़े और द्विपक्षीय सीमा व्यापार संबंधी मसलों पर स्वच्छंदता के साथ बड़े फैसले ले पाते। 
  3. डॉ सिंह को एक सुसंगत आर्थिक नीति प्रस्तुत करना चाहिए था ताकि 30 साल के 570 मिलियन युवाओं को आकर्षित किया जा सके। डॉ सिंह अच्छे से जानते हैं कि बाजार एवं मॉल में व्यापार और शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में सुधार कैसे किया जाना है। लेकिन उनके हाव-भाव से ये नहीं लगा कि वो काम कर रहे हैं।
  4. अगर इस धारणा को बनाने की कोशिश की जाती तो ज्यादा से ज्यादा नौकरियों का सृजन होता और शायद कांग्रेस थोड़ी बेहतर स्थिति में होती।
  5. याद कीजिए मोदी ने साल 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान हजारों घर बनवाने का वादा किया था? वो योजना अब फेल हो चुकी है। कुछ घरों का निर्माण तो हुआ, लेकिन लोग इन घरों को जाने में संकोच कर रहे हैं क्योंकि इन मकानों की गुणवत्ता उस स्तर की नहीं है। लेकिन अब कोई भी इस बारे में बात नहीं करता है क्योंकि मोदी की छवि काम करने वाले नेता की है।
  6. सोनिया गांधी को प्रणब मुखर्जी और पी. चिदंबरम के बीच हुई लड़ाई में हस्तक्षेप करना चाहिए था। वो मुखर्जी को और ताकत देकर मामला शांत कर सकती थीं क्योंकि उनका अनुभव उनको इस लायक बनाता है। 
  7. सोनिया गांधी को इस धारणा पर भी स्पष्टीकरण देना चाहिए था जिसमें बताया गया था कि सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह को चुनकर प्रणव मुखर्जी के साथ अन्याय किया। गैौरतलब है कि 1980 के दशक में जब प्रणब मुखर्जी मंत्री थे उस दौरान मनमोहन सिंह आरबीआई के गर्वनर थे।
    चुनाव समन्वय समिति की बीते माह एक भी बैठक नहीं
     
    इस बार के आम चुनाव में राहुल गांधी को कांग्रेस के भीतर सक्रिय भूमिका में लाने के लिए पूरी मेहनत की गई है। सोनिया गांधी ने राहुल के नेतृत्व में ही एक चुनाव समन्वय समिति का गठन किया। इस समिति में गुलाम नबी आजाद, जर्नादन द्विवेदी, अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, सीपी जोशी, मधुसूदन मिस्त्री, जयराम रमेश और ज्योतिरादित्य सिंधिया। इस समिति को चुनाव अभियान की रणनीति की योजना और देशभर में हो रहे चुनाव प्रचार पर नजर रखने का जिम्मा सौंपा गया था। जहां एक ओर चुनाव खत्म होने जा रहे हैं ऐसे समय में इस समिति की पिछले एक महीने में एक भी बैठक नहीं हुई है।

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