भटकता रहा भूखा-प्यासा
अपनी दास्तां बताते हैं तो बात के साथ आंसू अपने आप निकलते हैं। उन्होंने बताया कि रिटायर होने के बाद संजीवनी बिल्डकॉन को आठ लाख रुपए देकर एक प्लॉट बुक कराया था। लेकिन, कंपनी पैसा लेकर गायब हो गई। परिवार ने उन्हें ही कसूरवार ठहरा दिया।मुंबई में एक कंपनी में ऊंचे पद पर कार्यरत उनके बेटे और बहू उन्हें प्रताडि़त करने लगे। जिसे उंगली पकड़कर दुनिया दिखाई, वह ऐसे बदलेगा उम्मीद नहीं थी। फिर भी, अपना है सोचकर सब सहता रहा।पर, एक दिन अचानक वह अपनी पत्नी के साथ मुंबई चला गया और फिर कभी नहीं लौटा। मैं कई दिनों भूखा-प्यासा भटकता रहा और आदर्श आश्रम पहुंच गया। अब यहीं के लोग अपने हैं। जो 12 हजार रुपए पेंशन मिलती है, इनकी और अपनी जरूरतों पर खर्च कर देता हूं। लेकिन, एक आस पता नहीं क्यों मन में रहती है कि एक दिन बेटा लौटेगा...।
बेटा मैनेजर पर साथ नहीं
यहां रहने वाले बुजुर्गों की उम्र 60 से 80 वर्ष है। कहने को इन बुजुर्गों में किसी का बेटा इंजीनियर है, किसी का मैनेजर। किसी का सरकारी अधिकारी, तो किसी का बेटा निजी कंपनी में ऊंचे ओहदे पर। लेकिन, साथ कोई नहीं। यहां रह रहे हर बुजुर्ग की कहानी अलग है। लेकिन, सबका दर्द एक-सा कि अपनों ने साथ छोड़ दिया। और, सबकी उम्मीदें भी एक-सी, अपने आएंगे, साथ ले जाएंगे और फिर अपने परिवार में रहने का सुख मिलेगा।
आर्थिक तंगी बन रही बड़ी परेशानी
आश्रम में बुजुर्गों के खाने-पीने, इलाज आदि पर काफी खर्च आता है। यह खर्च निकालने के लिए एक पोल्ट्री फॉर्म और तीन गाय यहां हैं। लेकिन, मुर्गा और दूध बेचने से इतना पैसा नहीं आता कि पूरा खर्च चल सके। ऐसे में, बुजुर्गों की कई जरूरतें अधूरी रह जाती हैं। इनकी सबसे बड़ी जरूरत एक हॉस्पिटल है। क्योंकि, अधिकतर बुजुर्ग बीमार रहते हैं और उन्हें सही इलाज उपलब्ध नहीं है। यदि सरकार मदद करे, तो आश्रम कई और बुजुर्गों के लिए बड़ा आश्रय बन सकता है।
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