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14 फ़रवरी 2014

केजरीवाल ने दिया इस्तीफाः जानिए, इससे AAP को क्या हो सकता है नफा-नुकसान



नई दिल्‍ली. जनलोकपाल बिल पास करा पाने में असफल रहने के बाद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफा देने के बाद केजरीवाल ने हनुमान रोड स्थित कार्यालय की उसी खिड़की से पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया, जिससे पहली बार चुनाव जीतने के बाद उन्होंने लोगों को संबोधित किया था।
केजरीवाल की सरकार 49 दिन ही चल पाई। कुछ खास फैसले, कुछ विवाद, कुछ 'नाटक-नौटंकी' के बाद आम आदमी पार्टी सरकार ने इस्तीफा दे दिया। इस फैसले के बाद कई बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। आइए जानते हैं कि आखिर क्या मायने हैं इस फैसले के और क्या है सवाल?
इस्तीफे से क्या होगा फायदा?
 
1- दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से  इस्तीफा देने के बाद अरविंद केजरीवाल आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में पूरे जोर -शोर से जुट सकेंगे।
2- जनलोकपाल बिल आम आदमी पार्टी का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है। इसे अब वह लोकसभा चुनाव में भी इस्तेमाल कर सकेगी। लोगों में संदेश यह भी जाएगा कि केजरीवाल ने भ्रष्टाचार की लड़ाई के लिए सरकार की कुर्बानी दे दी। क्योंकि, कांग्रेस- बीजेपी उनकी इस लड़ाई को सफल नहीं होने दे रही थी।
3- कांग्रेस को केजरीवाल भरपूर नुकसान पहुंचा चुके हैं लेकिन सरकार से बाहर आकर आम आदमी पार्टी अब बीजेपी को निशाने पर ले सकेगी।
4- पिछले कुछ दिनों से केजरीवाल और उनकी टीम दिल्ली के स्थानीय मुद्दों में ही उलझकर रह गई थी लेकिन अब वह राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दों को लेकर विपक्षी पार्टियों पर हमला कर सकेगी।
 
क्या नुकसान हो सकता है आम आदमी पार्टी को? 
 
1- केजरीवाल के इस्तीफे से यह संदेश भी गया है कि वह प्रशासन चलाने में कामयाब नहीं हो सके। लिहाजा, अब इस्तीफा देने के बाद इसे उनकी एक कमजोरी के तौर पर देखा जाएगा।
 
2- विपक्षी पार्टियां केजरीवाल के इस्तीफा देने का कारण लोकसभा चुनाव लड़ने की जल्दबाजी बता रही हैं। इससे केजरीवाल की छवि जनता के बीच भी एक पीएम बनने की महत्वकांक्षा रखने वाले शख्स के तौर पर देखी  जाएगी। लिहाजा अगले चुनाव में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। 
 
3- केजरीवाल सरकार में रहने के दौरान एक-आध फैसलों को छोड़कर कोई बड़े फैसले नहीं ले सके। लिहाजा अब जब वह वोट मांगने जनता के बीच जाएंगे तो उन्हें लोगों के तीखे सवालों का सामना कर पड़ सकता है।
 
4- सरकार में रहने के दौरान केजेरीवाल ने विपक्षी पार्टियों को भी कई मुद्दे थमा दिए। इनमें खिड़की एक्सटेंशन केस, घर और कार की चर्चा, वादाखिलाफी और सबसे बड़ा हथियार विनोद कुमार बिन्नी हैं। लिहाजा इस बार के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी इन हथियारों का जमकर इस्तेमाल करेंगी।  
 
दिल्ली का क्या होगा?
1-सबसे पहला विकल्प तो राष्ट्रपति शासन का है। यदि  कोई पार्टी सरकार बनाने का दावा पेश नहीं करती तो उपराज्यपाल राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं।
 
2- लोकसभा चुनावों के साथ ही दिल्ली में फिर से विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं।
 
3- लोकसभा चुनावों के बाद भी चुनाव कराने का विकल्प है। 
 
क्या कहते हैं संविधान विशेषज्ञ 
अशोक अग्रवाल, एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता
इस जनलोकपाल बिल को THE GOVERNMENT OF NATIONAL CAPITAL TERRITORY OF DELHI ACT, 1991 के मुताबिक बिना उपराज्यपाल की अनुमति के असेंबली में लाया ही नहीं जा सकता था। इसके लिए उपराज्यपाल की सलाह जरूरी है, ये उपराज्यपाल पर निर्भर करता है कि वे बिल को असेंबली से पास कराने का सुझाव देते हैं, अपने पास रखते हैं या निर्णय ना लेने की स्थिति में राष्ट्रपति को भेजते हैं। जिसपर आखिरी फैसला राष्ट्रपति का होता है। इस एक्ट के अनुसार संचित निधि ,वित्तीय मामलों से जुड़े हुए कुछ ऐसे प्रावधान है जिनके अनुसार हैं बिल को असेंबली में तब तक नहीं लाया जा सकता है जब तक उसे उपराज्यपाल या राष्ट्रपति की सहमति न मिल जाए। 
 
मोहन परासरण,सॉलिसिटर जरनल
जन लोकपाल बिल को कानून बनाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की राय जरूरी है, केंद्र की मंजूरी के बिना पास ये बिल गैर कानूनी होता।
 
संविधान विशेषज्ञ ,सुभाष कश्यप 
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है, ऐसे में केंद्र सरकार को बाईपास करके कोई बिल दिल्ली विधानसभा में सीधे पेश करना संविधान के खिलाफ था। दिल्ली के मामले में केंद्र का कानून ही सर्वोपरि है। चूंकि केंद्र सरकार जनलोकपाल बिल पास कर चुकी है, ऐसे में दिल्ली के अपने लोकपाल का कोई मतलब नहीं था। 
 
प्रशांत भूषण, वरिष्ठ वकील
अनुमति के लेने के लिए वहां कुछ नियम हो सकते हैं लेकिन दिल्ली के जनलोकपाल कानून को प्रारंभिक तौर पर सदन को मान्यता मिल चुकी है। दिल्ली की कैबिनेट इसे पास कर चुकी थी, ऐसे में दिल्ली के स्तर पर जनलोकपाल में शामिल किए जाने वाले प्रावधानों को केवल इस आधार पर असंवैधानिक ठहराना ठीक नहीं हैं।
 
 
लोग क्या कह रहे हैं
 
1- केजरीवाल को लोग भगोड़ा कह रहे हैं।
 
2- कई लोग कह रहे है कि क्या अब दोबारा चुनाव में करोड़ों रुपए का खर्च नहीं आएगा? यानी केजरीवाल ने सरकार दोबारा चुनाव खर्च से बचने के लिए नहीं बनाई थी, वह केवल अगले चुनाव के हिसाब से काम करना चाहते थे।
 
3- कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि पहली बार किसी नेता को सिद्धांतों के कारण इस्तीफा देते देखा है।
 
4- वहीँ कुछ लोग यह भी कह रहे हैं  कि केजरीवाल अपने वादों को पूरा नहीं पाए तो हार कर इस्तीफा दे दिया।

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