नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहना न तो क्राइम है और न ही पाप। कोर्ट ने इस तरह की रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं और रिलेशनशिप के दौरान पैदा होने वाले बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए संसद को कानून बनाने को कहा है।
कोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप शादी की प्रकृति जैसा नहीं है। न ही इसे कानूनी मान्यता है। दुर्भाग्य से ऎसे संबंधों को रेगुलेट करने के लिए वैधानिक प्रावधान भी नहीं है। न्यायाधीश के.एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली बैंच ने लिव इन रिलेशनशिप को शादी की प्रकृति जैसे संबंध के दायरे में लाने और महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून के तहत सुरक्षा प्रदान करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए हैं।
कोर्ट ने कहा संसद को इन मामलों पर ध्यान देना चाहिए,सही कानून लाना चाहिए और कानून में संशोधन करना चाहिए ताकि महिलाओं और इस तरह के रिलेशनशिप के दौरान पैदा होने वाले बच्चों को प्रोटेक्ट किया जा सके हालांकि इस तरह के संबंध शादी के प्रकृति जैसे नहीं हो सकते। ये संबंध न तो पाप है और न ही अपराध। हालांकि इस तरह के संबंध समाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।
शादी करना या नहीं करने का फैसला या विपरित लिंगी संबंध रखने का फैसला पूरी तरह निजी है। कई देशों ने इस तरह के संबंधों को मान्यता प्रदान करना शुरू कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कानून जरूरी है क्योंकि इस तरह के संबंधों के टूटन पर महिलाओं को ही हमेशा कष्ट उठाना पड़ता है। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून शादी से पहले के संबंधों को प्रमोट नहीं कर सकता। लोग इसके पक्ष और विरोध में अपने विचार रख सकते हैं।
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