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24 नवंबर 2013

एक सच लेकिन कड़वा .....

 एक सच लेकिन कड़वा .....
तुम सय्येद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़ग़ान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ कि मुस्लमान भी हो ”
एक जवाब लेकिन कड़वा ...
बाँट कर हमे  में समाजों में
भूखंड लेकर हम
गुलाम इनके हो गए
बताओ तो सही
चंद टुकड़ों में बिके हम
मुसलमान आज
अपने ईमान से क्यूँ
बेईमान हो गए ..
कोई अंसारी
कोई पिंजारा
कोई फातेहान
कोई क़ुरेशी
कोई घोसी
कोई शाह
कोई देसवाली
ऐसे केसे केसे हमारे टुकड़े हो गए
ऐसे केसे हम मुसलमान हो गए .............अख्तर

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