दोस्तों आपसे मिलिए आप है भरत सिंह ..राजस्थान में कोंग्रेस से सांगोद विधानसभा से विधायक है और सरकार में सार्वजनिक निर्माण मंत्री है ...आप राजस्थान में घोषित और स्वीकृत एक मात्र ईमानदार मंत्री है .......भरत सिंह के बारे में सब जानते है के भरत सिंह ने अपने मंत्रालय ..कार्यकर्ताओं के लिए कुछ ख़ास काम नहीं किया है ...फिर भी उनके समर्थकों की कमी नहीं है .....भरत सिंह राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री जुझार सिंह के पुत्र है जुझार सिंह पहले भारतीय जनसंघ से विधायक थे फिर कोंग्रेस में शामिल हुए कोंग्रेस के विधायक बने और मंत्री बन गए .....भरत सिंह प्रारम्भ से ही ज़िद्दी हो साहसी रहे है कभी शिकार करने वाले भरत सिंह के दिल में पर्यावरण प्रेम जागा तो फिर भरत सिंह वन्य जीव और पर्यारवरण प्रेमी ही नहीं बल्कि रक्षक हो गए .....भरत सिंह ने पहले सांगोद से निर्दलीय चुनाव लड़ा फिर जनता दल से चुनाव लड़ा इसके बाद भरत सिंह कोंग्रेस में शामिल हो गए जो झालावाड़ ज़िले के ज़िला अध्यक्ष रहे वहाँ से विधायक बने फिर वसुंधरा सिंधिया के खिलाफ सांसद का चुनाव लड़ा अब भरत सिंह जी सांगोद से फिर से अपनी क़िस्मत आज़मा रहे है .इनके चुनाव का भी दिलचस्प क़िस्सा है यह समझोता वादी नहीं है ...ईमानदार है इसलिए कड़वे तो है इन्होने सीधे कुछ मुद्दे पर शांतिधारीवाल से खुला पंगा लिया देहात कोंग्रेस में मनमानी भरत सिंह के बर्दाश्त के बाहर रही और इन्होने खुले रूप में कोंग्रेस कि बैठक में वरिष्ठ पदाधिकारियों के सामने देहात कोंग्रेस पर गम्भीर आरोप लगाये .....वाद विवाद में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने कि घोषणा कि ...सभी सोचते थे के इस बार भरत सिंह नाम का ईमानदार और मज़बूत काँटा सियासत से निकल गया है लेकिन बिना टिकिट मांगे उन्हें कोंग्रेस ने टिकिट दिया ........भरत सिंह टिकिट मिलते ही शोबाज़ नहीं बने उनका स्वागत सत्कार उन्होंने नहीं करवाया और खुद के गाँव कुंदनपुर से सांगोद में पदयात्रा करते हुए आकर नामांकन भरने कि घोषणा कर दी .कोई रेली नहीं ..कोई झंडे बेनर नहीं ...कोई प्रचार प्रसार नहीं ..कोई मनुहार नहीं ..कोई सौदेबाज़ी कार्यकर्ताओं कि खरीद फरोख्त नहीं ..कोई लिफ़ाफ़े वितरण नही बस कल नामांकन भरने अकेले घर से निकले उनके साथ एक फिर दो फिर तीन जुड़े और फिर जब वोह सांगोद पहुंचे तो पन्द्राह किलोमीटर की इस पदयात्रा में भरत सिंह के साथ क़रीब सत्राह अठ्ठारह हज़ार पदयात्रियों का हुजूम जो सभी इनकी विधानसभा क्षेत्र के इनकी गलियों मुहल्लों के थे जो खुद ब खुद अपने घरों से निकला कर इनका साथ चुनाव में बिना इसी प्रतिफल के निकल पढ़े ......सुल्तानपुर के उप प्रधान रईस खान बताते है के भरत सिंह का भाषण मार्मिक और दिल कि गहराइयों को छूने वाला था उनके भाषण में सियासत नहीं स्थानीय लोगों के साथ हमदर्दी थी प्यार था मोहब्बत थी अपनापन था ...भीड़ से भरत सिंह ने निवेदन किया के में चुनाव नहीं लड़ना चाहता था लेकिन पार्टी ने हुक्म दिया है तो मेने नामांकन भरा है लेकिन मेरे पास झंडे बेनर पोस्टर नहीं है गाड़िया नहीं है खर्चा नहीं है यह चुनाव मेरा नहीं यह चुनाव आपका है आप जाने आपका काम जाने उन्होंने अपील कि महरबानी करके झंडे बेनर का चुनाव ना लड़े पोस्टर बनाकर मुझे दीवारों पर ना टाँके मुझे अपने दिलों में रखे आप भी मेरे दिल में है .....भरत सिंह ने कहा के मेरी यह आखरी रेली है में हारूंगा तो तुम हारोगे और जीतूंगा तो तुम जीतोगे उनके इस भावुक अंदाज़ को सांगोद के मतदाता अपने दिलों कि गहराई में उतार चुके थे और हज़ारो हज़ार कि स्तानीय भीड़ दिल ही दिल में एक बार फिर भरत सिंह को जिताने का संकल्प लेते नज़र आये ....जिस भरत सिंह के लिए उनके अपने कार्यकर्ता असंतुष्ट होकर कहते है के उहोने कार्यकर्ताओ के इए कुछ नहीं किया वाही कार्यकर्ता व्ही जनता उनकी ईमानदारी ..साफ गोई और वक़त कि पाबंदी मिजाज़ में सादगी ..प्यार मोहब्बत के आगे पिघल कर मोम बन गया और भरत सिंह ज़िंदाबाद भरत सिंह ज़िंदाबाद करते हुए उन्हें अधिकतम वोटों से जिताने के संकल्प के साथ बिना किसी लालच बिना किसी प्रतिफल के उन्हें जिताने के लिए चुनाव प्रचार में जुट गया ..यह जादू है या चमत्कार पता नहीं लेकिन कहते है के ईमानदारी सभी बुराइयों पर हावी होती है और भरत सिंह भारत भी है तो सिंह यानि दहाड़ने वाले जंगल के राजा शेर भी है वोह सर्कस के या फिर चिडियाघर के शेर नहीं सचमुच के शेर है लेकिन निर्मल सरल और सभी को जीतने वाले भी है इसीलिए तो आज उनके विधानसभा क्षेत्र के लोग भरत सिंह ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद कह रहे है ....................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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