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15 सितंबर 2013

तुम्हे याद है वोह लम्हा

तुम्हे याद है वोह लम्हा
जब अचानक
तुमने मुझे शरारती नजरों से निहारा था
और बस इस नज़र के बाद
हां इस नज़र के बाद
में हमेशा के लिए तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा हो गया था ...
तुम्हे याद है वोह लम्हा
जब डरते डरते पहली बार
मेने तुमसे इकरार किया था
बढ़ी हिम्मत से कहा था
हाँ मुझे तुमसे प्यार है
हाँ मुझे तुमसे प्यार है ..
तुम्हे याद है वोह लम्हा
मेने तुम्हारे नरम नरम हाथों पर
अपनी हथेलिया रखीं थी
तुम्हे याद है वोह लम्हा
तुम बेजान निढाल होकर
मेरे प्यार को हमेशा निभाना
यह कहते हुए मेरे सीने से लिपट कर सिसक गयी थी ..
तुम्हे याद है वोह लम्हा
तुम मुझ पर मेरे लियें
कुछ भी कर गुजरने के लिए तय्यार रहती थी
तुम्हे फ़िक्र थी मेरी ..मेरी जरूरतों की ..मेरी बीमारियों की
तुम्हे याद है वोह लम्हा
तुम और में एक साथ जब बाज़ार में घुमे थे
तुम्हे याद है वोह लम्हा
जब तुम घंटों मेरा इन्तिज़ार करती थी
मेरे लियें बेकरार रहती थी ....
शायद कुछ याद नहीं तुम्हे अब
क्योंकि
ना जाने किसकी नज़र लगती है हमारे प्यार को
ना जाने क्यों बदल गयी हो तुम
अपने वायदों अपने इकरार से ..
शायद कुछ याद नहीं तुम्हे
इसीलियें तो आज हम उन लम्हों को याद करके
रोज़ तड़पते है ..रोज़ रोते है ..रोज़ मरते है
शायद कुछ याद नहीं तुम्हे
इसीलियें तो तुम सुकून से
हमे भुलाकर तुम्हारे अपनों के साथ जी रहे हो
चलो कोई बात नही
तुम भूल गए तो क्या
हम तो याद रखेंगे
तुम बेवफा निकले तो क्या
हम तो बावफा होंगे
हम तुम्हे माफ़ करते है
तुम हमेशा खुशहाल रहो
हमेशा सह्त्याब रहो ..कामयाब रहो
गलती से भी न हो तुम्हारा मेरा सामना
बस खुदा से हम यही दुआ करते है
बस खुदा से हम यही दुआ करते है ...........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [16.09.2013]
    चर्चामंच 1370 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

    जवाब देंहटाएं

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