मोहनदास करमचंद गाँधी | |
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१९३१ में मोहनदास कर्मचंद गांधी
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जन्म | २ अक्तूबर १८६९ पोरबंदर, काठियावाड़, भारत |
मृत्यु | ३० जनवरी १९४८ (७८ वर्ष की आयु में) नई दिल्ली, भारत |
मृत्यु का कारण | हत्या |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
अन्य नाम | महात्मा गाँधी |
शिक्षा | युनिवर्सिटी कॉलिज, लंदन |
प्रसिद्धि कारण | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
राजनैतिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
धार्मिक मान्यता | हिन्दू |
जीवनसाथी | कस्तूरबा गाँधी |
बच्चे | हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास |
हस्ताक्षर |
सबसे पहले गांधी ने रोजगार अहिंसक सविनय अवज्ञा प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका, में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष हेतु प्रयुक्त किया। १९१५ में उनकी वापसी के बाद उन्होंने भारत में किसानों , कृषि मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्याधिक भूमि कर और भेदभाव के विरूद्ध आवाज उठाने के लिए एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद गांधी जी ने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण, आत्म-निर्भरता के लिए अस्पृश्यता का अंत आदि के लिए बहुत से आंदोलन चलाएं। किंतु इन सबसे अधिक विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाले स्वराज की प्राप्ति उनका प्रमुख लक्ष्य था।गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाए गए नमक कर के विरोध में १९३० में दांडी मार्च और इसके बाद १९४२ में , ब्रिटिश भारत छोड़ो आन्दोलन छेडकर भारतीयों का नेतृत्व कर प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में रहना पड़ा।
गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिए वकालत भी की। उन्होंने आत्म-निर्भरता वाले आवासीय समुदाय में अपना जीवन गुजारा किया और पंरपरागत भारतीय पोशाक धोती और सूत से बनी शॉल पहनी जिसे उसने स्वयं ने चरखे पर सूत कात कर हाथ से बनाया था। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि तथा सामाजिक प्रतिकार दोनों के लिए लंबे-लंबे उपवास भी किए।
हरिनो मारग छे 'शूरा'नो, नहि कायरनुं काम जोने प्रथम पहेलुं मस्तक मुकी, वळेती लेवुं नाम जोने - टेक
जवाब देंहटाएंसुत वित्त दारा शिष समर्पे, ते पामे रस पीवा जोने सिन्धु मध्ये मोती लेवा, मांही पड्या मरजीवा जोने - १
मरण आगमे ते भरे मुठी, दिलनी दुग्धा वामे जोने तीरे उभा जुए तमासा, ते कोडी नव पामे जोने - २
प्रेम पंथ पावकनी ज्वाळा, भारी पाछा भागे जोने मांही पड्या सो महा सुख माणे देखन हारा डाझे जोने - ३
माथां साटे मोंगी वस्तु, सांपडवी नहि स्हेल जोने महापद पाम्या ते मरजीव, मुकी मननो मेल जोने - ४
राम अमलमां राता माता, पुरा प्रेमी पतखे जोने 'प्रीतम'ना स्वामीनी लीला, ते रजनी दिन निरखे जोने - ५