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08 अगस्त 2013

जी हां इस्लाम का महीना चन्द से शुरू होता है और चाँद देख कर ही ईद मनाये जाती है मसला साफ़ है

दोस्तों कल पुरे हिन्दुस्तान के अधिकतम कोनों में बिना चाँद देखे ईद मनाई जा रही है ......जी हां इस्लाम का महीना चन्द से शुरू होता है और चाँद देख कर ही ईद मनाये जाती है मसला साफ़ है या तो खुद शहर काजी चाँद देखे या फिर उन्हें दो ऐसे शरियत से रहने वाले लोग आकर शहादत दे के सो किलोमीटर की दुरी पर हमने चाँद देखा है ..शरीयती कानून है के ऐसे गवाहों से शहर काजी सवालात करेंगे करेंगे और फिर मुतमईन होने के बाद ईद की घोषणा करेंगे ... शहर काजी अनवार अहमद इस मसले को समझाते हुए कहते है के यह शरियत हुजुर स।अ . के जमाने से चली आ रही है बादल हो ..बरसात हो या फिर किसी और वजह से चाँद ना दिख पाए तो फिर शहादत ली जाती थी कई बार मदीने शरीफ के लोग कहते थे के वहां चाँद देख लिया गया है तो हुक्म होता था के मदीने में चाँद देखा है तो वहा ईद कर लो मक्के में तीस पुरे होने पर कर लेंगे ..तो दोस्तों इतना बारीक मसला ..ऐसा इस्लाम जिसे कोई हालत बदल नहीं सकता ..इस्लाम के किसी भी नियम कायदे कानून को कोई तरीका या किसी का हुक्म नहीं बदल सकता फिर न जाने आज के हुकूमत के इशारों पर नाचने वाले कठमुल्लाओं को क्या हो गया है वोह रोज़े की गिनती को टी वी के इशारे पर टेलीफोन के इशारे पर कम कर रहे है ....एक चन्द ना जाने कहाँ दिखा और ईद अधिकतम स्थानों पर उसी चाँद को मानकर कर ली गयी कोई तहकीकात नहीं कोई सवाल जवाब नहीं बस हो गयी ईद घोषित ...लेकिन इस्लाम के जानकारों से एक ही सवाल है अगर ऐसा हो सकता तो हुजुर सअव् के जमाने में भी इसकी इजाजत मिल गयी होती पेशन गोई हो गयी होती के टी वी के चाँद से या फिर किसी दुसरे हजारों किलोमीटर दुरी के चाँद दिखने की कह भर देने की गेर इस्लामिक शहादत से चाँद मानकर ईद कर लेना एक रोजा ..एक तरावीह एक नमाज़ कम आकर लेना ...कोटा शहर काजी अनवार अहमद इस मामले में इस्लामिक रीती रिवाज विधि नियम और शरियत से बंधे है वोह चाँद और ईद की घोषणा की अहमियत को समझते है वोह आम मुसलमानों को और खुद को गुनाहों से बचाना चाहते है वोह अल्लाह और बंदे के एक रोजा ज्यादा कराने की मर्जी के बीच नहीं आना चाहते वोह शरियत और इस्लामिक कानून को ज़िंदा रखना चाहते है वोह मिसाल कायम रखना चाहते है के अपने फायदे के लियें अपनी मर्ज़ी से चाँद दिखने के अल्लाह के हुक्म को बदला नहीं जा सकता ..वोह कहते है के चाँद दिखने का मसला साफ़ है या तो खुद देखो ..सब देखे या फिर दो शरही जिंदगी जी रहे लोगों की शहादत हो तब चाँद देखे जाने की घोषणा होगी ..बादल है ..बारिश है खुद की मसलेहत है इसमें कोई क्या कर सकता है ..अल्लाह बहतर जानता है ..तो दोस्तों कोटा में या आसपास ना तो चाँद दिखा ना कोई शहादत आई इसलियें कोटा शहर काजी अनवर अहमद कल ईद की घोषणा नहीं की ..जबकि कई उतावले लोगों ने काफी कोशिश की के दिल्ली में हो रही है जयपुर में हो रही है फला जगह हो रही है सभी जगह हो रही है टी वी में खबर आ रही है एक रोजा और रख्वाओगे वगेरा वगेरा बेसब्र मुसलमान काजी साहब और उनकी घोषणा को सुन्ना ही नहीं चाहते इस्लामी कानून के हिसाब से केवल एक दिन केवल एक दिन भी नहीं चलना चाहते हालात यह है के इन लोगों ने अपनी मन मर्ज़ी चलाकर खुदा और खुदा के कानून को तहस नहस कर दिया है मनमानी से प्रशानिक त्य्यारियों के दबाव में सरकारी तमगे लेकर इस्लाम के कानून को बदल दिया है ... खेर खुदा बहतर जानता है लेकिन कोटा में कल ईद नहीं है जबकि कई आसपास और दूर दराज़ के इलाकों में ईद की घोषणा कर दी गयी है कोटा के लोग एक रोज़े ..एक तरावीह ..एक अलविदा जुमे का ज्यादा सवाब कमाएंगे जबकि दुसरे लोग जो बिना चाँद देखे बिना शहादत के टी वी की खबर और टेलीफोनिक जानकारी के आधार पर ईद मना रहे है शायद खुदा ने उनके नसीब में यह सवाब यह इबादत नहीं रक्खा है और उनसे इस सवाब को छीन लिया हिया खुदा बहतर जानता है उसकी मसलेहत वही जाने खुदा सभी के गुनाहों को माफ़ करे और अल्लाह उसके रसूल के बताये हुए रास्ते पर चलने की तोफिक अता फरमाए ...आमीन

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