रांची. शिवलिंग भगवान शंकर का प्रतीक है। उनके निश्छल ज्ञान और तेज का यह प्रतिनिधित्व करता है। ‘शिव’ का अर्थ है ‘कल्याणकारी’। ‘लिंग’ का अर्थ है ‘सृजन’। सर्जनहार के रूप में उत्पादक शक्ति के चिह्न् के रूप में लिंग की पूजा होती है। स्कंद पुराण में लिंग का अर्थ लय लगाया गया है।
लय (प्रलय) के समय अग्नि में सब भस्म हो कर शिवलिंग में समा जाता है और सृष्टि के आदि में लिंग से सब प्रकट होता है। लिंग के मूल में ब्रrा, मध्य में विष्णु और ऊपर महादेव स्थित हैं। वेदी महादेवी की है। अकेले लिंग की पूजा से सभी की पूजा हो जाती है।
लिंग का गौण अर्थ है
प्राचीन शैव साहित्य के अनुसार भगवान शिव निराकार माने जाते हैं, जबकि रूपवान होने के कारण उन्हें साकार कहा जाता है। उनके निराकार रूप की पूजा एक ब्रrांडाकार भौतिक प्रतीक की स्थापना करके की जाती है, जिसे भौतिक भाषा में हम ‘शिवलिंग’ कहते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)