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शताब्दियों बाद जब इस देश का इतिहास लिखा जाएगा तब इतिहासकारों द्वारा इस
देश के उपहासकारो का चर्चा होगा ...लिखा जाएगा भारत मुगलों, अंग्रेजों के
अलावा इटली का भी गुलाम रहा ...सभी सरदार राष्ट्र भक्त और स्वाभिमानी नहीं
होते कुछ मनमोहन सिंह जैसे भी होते हैं ...नीतिश कुमार बिहार का आख़िरी मुग़ल
शाशक था ...मुलायम सिंह सत्ता का हसीन सपना देखने वाले आख़िरी मुंगेरी लाल
थे ...दिग्विजय सिंह को अपने मुग़ल होने का मुगालता था और मुगलों का मानना
था कि अपनी कौम से दगा करने वाला किसी का सगा नहीं हो सकता ...बच्चे
निबन्ध लिखेंगे कि आतंकियों के मुकदमें वापस लेने के प्रयास से अखिलेश अल
-कायदा को क्या फ़ायदा दे सके . इनकी समाजवादी सरकार में समाज सहमा हुआ था
और वाद बकैती कर रहा था . क़ानून व्यवस्था में आम आदमी आतंकित था और
आतंकियों को सरकार जेल से बाहर निकालने की जुगत में थी जैसे जेल आतंकियों
के लिए नहीं आतंकितों के लिए बनी हो ...कश्मीर भारत का हिस्सा कम मुग़ल
सल्तनत अधिक थी ...रजिया सुलतान की तरह एक थीं कांसीराम की बहन मायाबती
किन्तु रजिया की तरह वह गुण्डों में कभी नहीं फंसी सिवा गेस्ट हाउस काण्ड
के ...उच्च न्यायालय का जज बनाने की जुगत जिस्मानी भी थी रूहानी भी और
कहानी भी . महेश्वरी आढ़त के अलावा अभिषेक मनु सिंघवी के योग शिविर में भी
चरित्र का अनुलोम विलोम करना पड़ता था ...लश्कर -ऐ -तैयबा की आत्मघाती इशरत
जहाँ को मार गिराने वाले पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाया गया था
...मंहगाई से त्रस्त हरजिंदर का थप्पड़ खाने के बाद शरद पवार का राजनीतिक
पतन शुरू हो गया था ...ह्त्या कर रहे नक्सलियों के मानवाधिकार सब पर भारी
थे ...भारत देश में दूसरे नम्बर के बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक कहा जाता था
...संविधान जातिप्रथा को वर्जित करता था किन्तु जाति के आधार पर आरक्षण
दिया जा रहा था ... सामाजिक न्याय से प्रेरित भेंसों और गधों ने घुड दौड़
में अपनी आबादी के हिसाब से आरक्षण की माँग की थी ...हर नया संसदीय सत्र
पुराने घोटाले को भूल कर नए घोटाले पर चर्चा करता था और उस अन्जाम तक न
पहुँचने वाली चर्चा पर खूब खर्चा करता था ...जिस खेल को विश्व के दस
प्रतिशत देश भी नहीं खेलते थे उस क्रिकेट की भारत में लोकप्रियता थी
...क्रिकेट और फिल्म से देश के नायक आ रहे थे और यह क्रिकेट और फ़िल्मी नायक
दरअसल एक खलनायक दाउद इब्राहिम के गुर्गे थे ...देश में कुछ घोटालेबाज
चटवाल, कुछ घोषित आतंकी , कुछ दाउद की मुम्बईया फ़िल्मी रखेलें भी पद्म
पुरुष्कार पा रही थीं ...यों तो इस कालखण्ड देश हत्यारों से आक्रान्त था पर
फिर भी कुछ लोग गांधी जी की ह्त्या को जायज ठहरा रहे थे और हत्यारे गौडसे
को महिमा मंडित कर रहे थे, तो दूसरे लोग नक्सली हत्यारों को जायज ठहरा रहे
थे, तीसरे लोग इस्लामिक आतंकवादीयों के कातिलों के कसीदे पढ़ रहे थे , अपनी
सामूहिक हत्याओं से छुब्ध एक समुदाय के लोग स्वर्ण मंदिर में भिण्डरावाले
जैसे कातिल को महिमामंडित कर संतों /गुरुओं के समकक्ष रख रहे थे कुल मिला
कर पूरे राष्ट्र में कातिलों के पक्ष में क़त्ल हो रहे लोग लामबंद हो रहे थे
...हिन्दुओं के छह हजार मंदिर तोड़ने का कोई चर्चा नहीं था पर इससे उकताए
लोगों ने जब एक बाबरी मस्जिद तोड़ दी तो अंतरराष्ट्रीय श्यापा था
...हिन्दूओं में लोग अपनी बेटी का नाम 'रति' रखते थे और मुसलमानों में
'सूफियान' जैसे नाम बहुत प्रचलित थे पर इस्लाम के लिए बहुत कुछ करने वाले
नाम 'औरंगजेब' का प्रचलन ही ख़त्म हो चुका था ...कोई अपनी औलाद का नाम
'औरंगजेब' नहीं रखता था ...राष्ट्र में एक महाराष्ट्र भी था जहां जहाँ देश
के अन्य प्रान्तों के लोग उतने ही असुरक्षित थे जितने भारतवासी ऑस्ट्रेलिया
में ...और ...और इतिहास में यह भी शायद इस बार लिखा जाए क़ि इस बार भी
इतिहासकार उतने ही वैचारिक बेईमान थे जितने पहले के इतिहासकार ...इतिहासकार
गुजरे समय की सीवर की सफाई करते रहे हैं उन्होंने गुजरे समय के सूरज की
समीक्षा ही कब की है ?" ----- राजीव चतुर्वेदी
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