उच्चतम
न्यायालय ने कहा है कि स्कूलों में सिर्फ प्रशिक्षित शिक्षकों को ही
अध्यापन की अनुमति दी जानी चाहिए। न्यायालय ने राज्यों में प्राथमिक
स्कूलों में उचित योग्यता के आधार के पालन के बगैर ही तदर्थ शिक्षक नियुक्त
करने पर सवाल उठाया है।
न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति
दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने तदर्थ नियुक्तियों की व्यवस्था से असहमति व्यक्त
करते हुए कहा, ‘इस तरह के लोक लुभावन तरीकों से शिक्षा प्रणाली के बुनियादी
ढांचे को नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।’ न्यायालय ने गुजरात
में प्राथमिक स्कूलों में ‘विद्या सहायक’ की नियुक्ति से संबंधित मामले में
राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
न्यायालय ने राज्य सरकार को उस नियम से
संबंधित सारी सूचना पेश करने का निर्देश दिया है जिसके तहत ‘विद्या सहायक’
की भर्ती की जा रही है। न्यायालय ने कहा, ‘‘प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा ही
शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। न्यायाधीशों ने कहा, ‘आपको विद्या सहायक के
चयन की प्रक्रिया, योग्यता, कार्यकाल और दूसरे विवरण पेश करने होंगे। आप
प्राथमिक स्कूल के शिक्षकों और विद्या सहायक की योग्यता और वेतन मान सहित
विभिन्न पहलुओं का तुलनात्मक विवरण पेश करें।’
न्यायालय ने 20 मई को प्राथमिक स्कूलों में
शिक्षकों की तदर्थ नियुक्तियों पर सवाल उठाते हुये कहा था कि इस तरह की
नीति समूची शिक्षा प्रणाली और देश के भविष्य को चौपट कर रही है। न्यायालय
ने सवाल किया था कि संविधान का अनुच्छेद 21-क प्रभावी होने की स्थिति में
इस तरह की नीति कैसे लायी जा सकती है। इस तरह की नियुक्तियां उत्तर प्रदेश
में भी हो रही हैं। न्यायालय ने कहा था कि ये शिक्षा सहायक तो शिक्षा
‘शत्रु’ हैं।
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