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07 मई 2013

अस्सी की उम्र का एक अजूबा


फौजा सिंह किसी अजूबे से कम नहीं हैं। सौ साल की उम्र में मैराथन दौड़ में हिस्सा लेकर उन्होंने एक रिकॉर्ड बनाया है हालांकि तकनीकी कारणों से उनका यह कीर्तिमान गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज नहीं हो पाया है।

मेरी जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही है। सबसे भयावह दौर वह था, जब अपनी बीवी और बेटे को खोने के बाद मैं डिप्रेशन का शिकार हो गया। असल में, मेरे तीन बेटे और तीन बेटियां थीं। एक-एक करके उन्होंने भारत छोड़ दिया। सिर्फ एक बेटा कुलदीप मेरे साथ रहा। एक दिन उसके साथ मैं खेत में काम कर रहा था। तभी तूफान आया और तेज हवा के झोंके के साथ मेटल का कोई टुकड़ा आया, जो बेटे को लगा और उसका देहांत हो गया। उस पल मैंने भारत छोड़ने का फैसला कर लिया। इंग्लैंड जाकर मैं अपने सबसे छोटे बेटे के साथ रहने लगा।

इसके बाद जब भारत वापसी हुई, तब रनिंग के लिए ही हुई। लंदन में मैंने 89 साल की उम्र में पहली बार मैराथन दौड़ में हिस्सा लिया। फिर साल 2010 में लग्जमबर्ग इंटरफेथ मैराथन कंप्लीट किया। तब मेरी उम्र 99 थी और तब मैं दुनिया का ओल्डेस्ट हाफ मैराथन रनर बना। इसके बाद 100 साल की उम्र में फुल मैराथन में हिस्सा लेने वाला ओल्डेस्ट मैन बना। यह फुल मैराथन 2011 में टोरंटो वाटरफ्रंट इवेंट में आयोजित हुई थी। दुख की बात यह है कि अब तक मेरे ये रिकॉर्ड गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपनी जगह नहीं बना सके हैं। क्योंकि अपनी उम्र को साबित करने के लिए मेरे पास बर्थ सर्टिफिकेट नहीं है। हालांकि मुझे इस बात से खुशी मिली कि 2012 के लंदन ओलिंपिक में मैं टॉर्च-बीयरर था। इसके अलावा, यूके के कई रेसेज में मैंने रिकॉर्ड्स बनाए हैं।
ऐसा नहीं है कि दौड़-भाग करने में मैं बचपन से ही निपुण था। जब जालंधर में 1911 में पैदा हुआ था, तब खासा कमजोर था। पांच साल की उम्र तक ठीक से चल नहीं पाता था। मेरे पैर बेहद कमजोर थे और इसके लिए मेरी खिल्ली भी उड़ती थी। दस साल की उम्र तक भी मुझे चलने-फिरने में दिक्कत होती थी। इसके बावजूद मुझमें दौड़ के प्रति खूब उत्साह था। हालांकि उन दिनों मुझे रनिंग के लिए समय नहीं मिलता, क्योंकि मुझे खेतों में काम करना पड़ता था। लेकिन जब मैंने 80 वें साल में कदम रखा, तब रनिंग को फिर से अपनी जिंदगी में शामिल किया। यह वह उम्र होती है, जब ज्यादातर लोग बिस्तर में पड़ जाते हैं। इस उम्र में स्पोर्ट्स पर्सन बनने के लिए मैंने हर तरह की चुनौती का सामना किया। तब लोगों को बड़ी हैरानी भी होती थी कि मैंने मैराथन रनिंग को चुना है, जिसमें बहुत ताकत की जरूरत है। दौड़ने से मुझे अपने जीवन के उदासी भरे लम्हों को भूलने में मदद मिलती है।

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