"आग
दरख्तों में सोई हुई
आग, पत्थरों में खोई हुई
सिसकती हुई अलावों में
सुबकती हुई चूल्हों में
आँखों में जगी हुई या
डरी हुई आग
आग, तुझे लौ बनना है
भीगी हुई, सुर्ख, निडर
एक लौ तुझे बनना है
लौ, तुझे जाना है चिरागों तक
न जाने कब से बुझे हुए अनगिन
चिरागों तक तुझे जाना है
चिराग, तुझे जाना है
गरजते और बरसते अंधेरों में
हाथों की ओट
तुझे जाना है
गलियों के झुरमुट से
गुजरना है
हर बंद दरवाजे पर
बरसना है तुझे..."
आग / मनमोहन
दरख्तों में सोई हुई
आग, पत्थरों में खोई हुई
सिसकती हुई अलावों में
सुबकती हुई चूल्हों में
आँखों में जगी हुई या
डरी हुई आग
आग, तुझे लौ बनना है
भीगी हुई, सुर्ख, निडर
एक लौ तुझे बनना है
लौ, तुझे जाना है चिरागों तक
न जाने कब से बुझे हुए अनगिन
चिरागों तक तुझे जाना है
चिराग, तुझे जाना है
गरजते और बरसते अंधेरों में
हाथों की ओट
तुझे जाना है
गलियों के झुरमुट से
गुजरना है
हर बंद दरवाजे पर
बरसना है तुझे..."
आग / मनमोहन
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