आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

04 मई 2013

हिन्दी माध्यम की दुर्दशा पर पूरा उपन्यास या महाकाव्य लिखा जा सकता है ,

हिन्दी माध्यम की दुर्दशा पर पूरा उपन्यास या महाकाव्य लिखा जा सकता है , लिख भी रहा हूँ '' सांप सीढी का खेल '' .. यूपीएससी के ताज़ा सुधारों का सबसे छिपा पर सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य था नामुराद हिन्दी माध्यम के गलीज़ लोगों को लोक सेवा से बाहर का रास्ता दिखाना ..वह तो अच्छा हुआ ,तेलगू -कन्नड़ -मराठी वाले भिड गये वरना ''क्षेत्रीय भाषा '' के रूप में भी कोई पूंछन हार न मिलता हिन्दी का !.. सेना , सिविल सेवा , उच्च शिक्षा ( आई आई टी , आई आई एम ...) सबसे बाहर हैं हिन्दी वाले ( या सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा अछूत रखे गये हैं )... पर दोष क्या केवल एलीट वर्ग का ही है ?..उत्तर आता है ,बिल्कुल नहीं .. हिन्दी पट्टी ने अपनी दुर्दशा की कहानी खुद लिखी है .. यह वही हिन्दी पट्टी है जो लालू जैसे मसखरे को अपने ऊपर १५ साल राज करने की इज़ाज़त देती रही है ..पूरब का ऑक्सफोर्ड व हिन्दी पट्टी का ह्रदय इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों का स्तर यह है कि उन्होंने उन्हें अपना अध्यक्ष व महामंत्री कोई शरीफ व पढ़ा लिखा आदमी नहीं मिला जो अकेडमिक सुधारों के बारे में कुछ सोच भी सकें ...
हिन्दी माध्यम की शिक्षा की शुरूआत होती है प्रायमरी स्कूलों से , एक मास्टर साहब हैं ..५ क्लास लगीं हैं दरी पर ..मास्टर साहब कूद -२ कर हर क्लास को डील कर रहे हैं .. एक इंटर कालेज है जिसके सारे टीचर स्टाफ रूम में गप्प मार रहे हैं और पूरा स्कूल मैदान में आज़ादी का आनंद ले रहा है ..और फ़िर ''उच्च शिक्षा '' के क्या कहने ..कानपुर , अवध , आगरा ,पूर्वांचल ..जैसे कारखाने खुले हैं गधे -खच्चर बनाने के ..हर साल लाखों निकल रहे हैं इन फैक्तरियों से .. निकले और चल दिये '' आई ए एस -पीसीएस '' '' ज्वाइन '' करने .. घर पर रहेंगे तो गोबर काढना पड़ेगा , गेहूं काटना पड़ेगा ... इलाहाबाद में बाप के वजीफे पर ऐश ही ऐश फुरसत हो गयी ४० साल तक ( जय हो मुलायम सिंह यादव ).. ठीक से बोल नहीं सकते ,लिख नहीं सकते पर बनेगें आई ए एस ही ...
और सौ में से एक बंदा कोई सीरियस भी हो गया तो एक से भयंकर अनूदित हिन्दी माध्यम की पुस्तकें .. कोई माई का लाल उन्हें पढ़ के तो दिखाए ... और देशकाल - आदर्शों की यह स्थिति की मैंने इलाहाबाद विवि की एम ए की क्लास से उनका आदर्श पूंछा तो राजा भैया , सोने लाल पटेल , अमर मणि त्रिपाठी भी दर्जनों छात्रों के आदर्श थे ,पूरी क्लास में किसी ने चे गुएरा का नाम किसी ने नहीं सुना था ....
हिन्दी माध्यम के आई ए एस के इंटरव्यू का एक हाहाकारी अनुभव ही दुर्दशा को बताने के लिए काफी है ( छात्र घुसता है ,पहुंचते ही चेयरमैन उससे अंग्रेजी में कुछ पूंछते हैं .. वह भकुआ जैसा विवश मुह बनाता है , तो लोग समझ जाते हैं ..तो दुभाषिया उसे बताता है कि आपसे यह पूंछा जा रहा है ..छात्र कुछ बताता है तो चेयरमैन साहब समझ नहीं पाते .. दुभाषिया उन्हें बताता है .. छात्र फिलोसिफ़ी में चिदाणु के बारे में कुछ बताना चाहता है ..उसे न दुभाषिया समझ पा रहा है न चेयरमैन... अंत में पता चलता है कि छात्र को ६० अंक मिले इंटरव्यू में और ३० अंक से वह चूक गया सूची में स्थान पाने से )...
इस लिए भय्या द्विभाषी बनो , नोर्मन लुईस की वर्ड पॉवर मेड इजी लो उसका भयंकर अभ्यास करके शब्द ज्ञान बढ़ाओ ..हिन्दू पढ़ो ..ग्रुप बनाकर उसमे अंग्रेजी में बोलने का अभ्यास करो .. हिन्दी माध्यम वालों आप वर्ण व्यवस्था के असली अछूत हैं ..इसलिए अपनी मेहनत व लगन से अपना अभिशाप तोडें ....आमीन ....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...