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07 मई 2013

लाल नदी का पानी आहिस्ता-आहिस्ता हो रहा है दुधिया



रायपुर। ढोलकाल के शिखर पर गणपति मुस्कुरा रहे हैं। बादलों से लिपटी बैलाडीला की पहाड़ियां उचक-उचक कर देख रही हैं। शंखनी-डंकनी मचल रही हैं। एक बार फिर इतिहास करवट ले रहा है। साल-सागौन के जंगलों में पहाड़ी मैंना नया ककहरा सीख रही है। बीत गए वे दिन जब मुट्ठीभर अनाज के लिए मुंदहरे में आयती को कोसों दूर बचेली-दंतेवाड़ा आना पड़ता था। मंगीबाई को बादलों की बाट जोहनी पड़ती थी कि वे कब आएं और खेतों में बरसें। सोमली अब बैगा-गुनिया के ही भरोसे नहीं रहती। बुदरू को अब बड़े अस्पताल जाते हुए अपनी जेब नहीं टटोलनी पड़ती। रामलाल जानता है कि अपने बच्चे को पढ़ा-लिखा बड़ा आदमी बनाने का उसका ख्वाब अब कैसे सच हो सकता है। दंतेवाड़ा बदल रहा है।

सहमे-सहमे लोगों के चेहरों पर तैरती मुस्कुराहटें, दहशतजदा आंखों में जिंदगी की चमक, बारुद की बदबू में पसीने की खुशबू..। हरी-हरी पत्तियों के पीछे झरने खिलखिला रहे हैं। किसने सोचा था कि जिस इलाके में नक्सलवादी स्कूलों को धमाकों से उड़ा रहे हों, वहां के बच्चे किताब-कापियां थामें आसमान छूने निकल पड़ेंगे। बड़े-बड़े शहरों के महंगे स्कूलों को पछाड़ते हुए कवासी जोगी, कविता माड़वी जैसी बच्चियां सफलता के नए किस्से गढ़ेंगी। किसने सोचा था कि अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में इस इलाके के 12 बच्चे एक साथ चयनित हो सकते हैं। लेकिन यह हुआ, यह सफलता की पहली किस्त है। दूसरी किस्त की प्रतिभाएं पोटा केबिनों में वर्जिश कर रही हैं। स्कूलों को बारुदों से उड़ा देने की नक्सली नीति का जवाब पोटा-केबिन दे रहे हैं। पक्की छत न सही, बांस-चटाई टीन-टप्पर ही सही। बारह पोटा केबिनों में किल्लोल गूंज रहा है, 44 और कतार में हैं। एराबोर-बांगापाल-पाकेला का हाथ थामे गादीरास-पालनार-तालनार नई राह चल पड़े हैं। एक हाथ में कुदाल और दूसरे में किताबे थामे समझ रहे हैं कि कंप्यूटर के भीतर भी उनके लिए कितना सारा स्पेस है।

लोहा-टीन-कोरंडम से भरी-पूरी धरती में विकास का पहिया तेजी से घूम रहा है। रोजगार ने नए साधन दरवाजे खोल रहे हैं। फैक्ट्रियां, परियोजनाएं दरवाजे खटखटा रही हैं और दंतेवाड़ा स्वागत के लिए तैयार खड़ा है। एजुकेशन सिटी का फूल हाथों में लिए। यहां पढ़कर बच्चे अपना कौशल तेज करेंगे। यहां पालिटेक्निक कालेज भी होगा, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान भी बालिकाओं के लिए कस्तूरबा गांधी विद्यालय, छू लो आसमान योजना का कन्या परिसर, आदिमजाति कल्याण विभाग का आश्रम, नक्सल हिंसा में अनाथ हुए बच्चों के लिए आस्था गुरुकुल, दो आवासीय विद्यालय, राजीव गांधी शिक्षा मिशन के तहत बालिका छात्रावास, आदर्श विद्यालय और क्रीड़ा परिसर.....यानी कालेजों-स्कूलों-आश्रमों का शहर और करीब चार हजार विद्यार्थी इस शहर के नागरिक होंगे। दंतेवाड़ा-जिले के प्रवेश द्वार गीदम में यह अनोखा शहर आकार ले रहा है।

दुनिया देख रही है कि दंतेवाड़ा में शिक्षा की सड़कों का जाल किस तरह बिछता चला जा रहा है। डामर की सड़कों की धज्जियां उड़ाने वाले नक्सलवादी इन सड़कों के आगे बेबस हैं। वे घने जंगलों में हथियारों और गोले बारूद की फैक्टरियां लगा रहे हैं तो दूसरी ओर शोषण और अत्याचार को कुचलने सरकार अक्षर बांट रही है। शोषकों-अत्याचारियों से निपटने के सही तरीके सिखा रही है।

सिंचाई सुविधाओं के मामले में भी दंतेवाड़ा में अच्छी प्रगति हुई है। यहां कई सिंचाई परियोजनाएं स्थापित हुई हैं और कई पर काम चल रहा है। पिछले आठ सालों में खेती के रकबे में भी खासा इजाफा हुआ है। यह 90.691 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख एक हजार हेक्टेयर हो चुका है। यानी माई दंतेश्वरी का आशीष बरस रहा है। लाल नदी का पानी आहिस्ता-आहिस्ता दुधिया हो रहा है।

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