आपका-अख्तर खान

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16 मई 2013

छितिज़ तक तेरी बात होती है

छितिज़ तक तेरी बात होती है
तुम्हारे जगने पर प्रात होती है
तुम्हारे सोने पर रात होती है
मुस्कराती हो जब उर्वशी की तरह
तब छितिज़ तक तेरी बात होती है

शरद झोके पवन के भले ही चले
चाहे बागों में सावन के झूले डले
डाल पर चाहे चातक तडफता रहे
मस्त हो चाहे बादल गरजता रहे
तेरी आंखे अगर झिलमिलाने लगें
अपने अश्कों से आँचल भिगाने लगें
तभी समझो की बरसात होती है

कलिया चाहे खिले फूल महका करे
हर झुकी डाल पर चिड़ियाँ चहका करे
तितलियाँ सप्तरंगी छटा ओड़ लें
भवरें चाहे ग़ज़ल गुनगुनाते रहें
तेरे चेहरे का रंग जब निखरने लगे
तेरे अधरों पर लाली मचलने लगे
हर ऋतू तब मधुमास होती है

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