हनुमान जयंती: संकट मोचन नाम तिहारो
भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो
हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण
हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। हनुमान जी ने ही हमें यह
सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही
नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि
उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में
हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस,
सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे
हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते
हैं।
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं
है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति
या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में
सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका
में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने
भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न
सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि
अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान
था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन
था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां
उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी
के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम
को ही दिया।
वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित
होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा
भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है
कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान
जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर
चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर
सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर
जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से
श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई,
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले
सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर
उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति
लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर
उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण
अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।
हनुमान जयंती: संकट मोचन नाम तिहारो
भारतीय-दर्शन में सेवा भाव को सर्वोच्च स्थापना मिली हुई है, जो
हमें निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण
हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। हनुमान जी ने ही हमें यह
सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही
नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि
उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में
हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस,
सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे
हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते
हैं।
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं
है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति
या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में
सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका
में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने
भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। सीता हरण के बाद न
सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि
अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान
था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन
था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां
उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी
के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम
को ही दिया।
वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित
होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा
भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है
कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान
जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर
चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर
सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर
जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से
श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई,
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले
सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर
उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति
लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर
उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण
अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।
तब
जम्हाई बंद हुई।
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