आपका-अख्तर खान

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26 अप्रैल 2013

मेरी कोशिश थी हंसने की तू फिर से रुला गयी है ,


मेरी कोशिश थी हंसने की तू फिर से रुला गयी है ,
मैं तो पहले ही अकेला था तू अहसास करा गयी है !

तू हाथ छुडा चली गयी , मजबूरी है कहके ,
मैं मुडके आउंगी , मुझे चली गयी ये कहके
मैं सच मान बैठ , पर वो लारा ला गयी है !
मैं तो पहले ही अकेला था तू अहसास करा गयी है !

ये जिंदगी कांटो सी इसे ऐसे ही रहना है ,,
किसीने हमे समझने का नहीं जोखिम लेना है !
हमे दुखड़े सहने की अब आदत लगा ली है
मैं तो पहले ही अकेला था तू अहसास करा गयी है !

अब जिद है अपनी भी किसी को अपना कहना नहीं
जो छोड़ गयी मझदार में उनका नाम भी लेना नहीं
अब आंसू रुकते नहीं , कैसा रोग लगा गयी है
मैं तो पहले ही अकेला था तू अहसास करा गयी है !

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