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17 अप्रैल 2013

बाग़वानी बनी वरदान



मनोहर कुमार जोशी
राजस्थान में सवाईमाधोपुर जिले की करमोदा तहसील के दोंदरी गांव के प्रयोगधर्मी और प्रगतिशील किसान लियाक़त अली अपनी हर सफलता का श्रेय उद्यानिकी को देते हैं. अपनी पांच हैक्टेयर कृषि भूमि में से तीन हैक्टेयर पर उन्होंने अमरूदों का बाग़ लगा रखा है. उनके बगीचे में इस वर्ष अमरूदों की बम्पर पैदावार हुई है. छोटे-बड़े सभी पेड़ फलों से लदे हुए हैं. कई पेड़ों की डालें तो फलों के वजन से जमीन पर गिरी हुई हैं. लेखक को फलदार बाग दिखाते हुए उन्होंने सुनाई अपनी सफलता की कहानी - सुनते हैं उन्हीं की जुबानी...

 हमारा पुश्तैनी पेशा खेतीबाड़ी है. मेरे पिता समीर हाजी परम्परागत खेती किया करते थे. पिता के इंतकाल के बाद मैं भी गेहूं, जौ, चना सरसों आदि की फसलें लेने लगा, लेकिन उससे कुछ खास हासिल नहीं हुआ. कभी ज्यादा सर्दी की वजह से फसलों को नुकसान होता, तो कभी पानी की कमी के कारण पर्याप्त सिंचाई के अभाव में अच्छी पैदावार नहीं होती. इससे भविष्य की जिम्मेदारियां अधर झूल में दिखाई देने लगीं.

ऐसी स्थिति में एक दिन मैं यहां के कृषि एवं उद्यान विभाग तथा स्थानीय कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारियों से मिला. उन्होंने मुझे अमरूद का बगीचा लगाने की सलाह दी. मेरे लिए इनसे मिलना बहुत ही लाभप्रद रहा. उनके सहयोग एवं सलाह पर मैंने अमरूदों की खेती शुरू कर दी. नर्सरी से एक रूपये प्रति पेड़ के हिसाब से 300 पेड़ खरीद कर एक हैक्टेयर जमीन पर लगाए. बड़े होने पर इन पेड़ों पर अमरूद लगने शुरू हो गए, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. इससे हुई आय ने उद्यानिकी फसल के प्रति मेरा उत्साह बढ़ाया और मैंने अपने बगीचे को एक हैक्टेयर से बढ़ाकर तीन हैक्टेयर में कर दिया. छह सौ पेड़ और लगाए. दूसरी बार लगाए पेड़ों के पौधे लखनऊ से लाया. ये पौधे इलाहाबादी, मलिहाबादी, बर्फ गोला एवं फरूखाबादी किस्म के थे तथा एल-49 से स्वाद में बढि़या व पेड़ से तुड़ाई के बाद ज्यादा समय तक तरोताजा रहने वाले थे.  नए पौधों से दो साल बाद फसल की पैदावार में वृद्धि हुई.  इससे ढाई लाख रूपये की आय हुई. इस बार मैंने पैदावार बेचने का ठेका कोटा के एक फल व्यापारी को दिया है, लेकिन बम्पर पैदावार होने के बाद लगा कि यदि ठेकेदार के बजाय मैं खुद इसे बेचता, तो कहीं ज्यादा लाभ में रहता. इस मर्तबा इस कदर पेड़ों पर फल लदे हैं कि फलदार पेड़ों की डालें झुक कर जमीन पर आ गई हैं.

फलों की तुड़ाई नवम्बर से चल रही है. यह सिलसिला मार्च तक चलेगा. अमरूदों की खेती मुझे एवं मेरे बेटों को रास आ गई है. एक हजार पौधे अपने बाग में और लगाए हैं. एक दो साल बाद इनसे भी आय शुरू हो जाएगी. महंगाई की मार उद्यानिकी फसल पर भी पड़ी है. शुरू में मुझे प्रति पौधा एक रूपये में मिला था, जबकि इसके बाद यही पौधा एक से बढ़कर चार रूपये का अर्थात चार गुना महंगा मिला. पिछले वर्ष लखनऊ से लाए गए पौधों की कीमत यहां पहुंचने तक लगभग 25 रूपये प्रति पौधा पड़ गई, लेकिन मुझे लगता है इस पौधों की किस्म अच्छी होने के कारण इसका लाभ मिलेगा.

यहां की जलवायु हवा, पानी एवं मिट्टी अमरूद के पेड़ों को भी रास आ गई है तथा जो किसान बगीचे की अच्छी तरह सार-संभाल करता है, उसके लिए बगीचा सोना उगलता है. मैंने नए पौधों की रोपाई से पहले बकरी की मींगनी की खाद से बगीचे को भली-भांति संधारित किया था. समय-समय पर पेड़ों की देखभाल करता रहता हूं. पशुओं से पेड़ों एवं फसल की रक्षा के लिए बगीचे के चारों तरफ लोहे के मोटे तार वाली जाली की बाड़ लगा रखी है. इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में नील गायें हैं, जिस खेत में रात को वे घुस जाती हैं, उसकी फसल चोपट कर देती हैं.

खेत एवं बगीचे में सिंचाई के लिये खेत पर कुआं एवं फार्म पौंड हैं, जिससे सिंचाई की कोई समस्या नहीं है. बूंद-बूंद और फव्वारा सिंचाई अपना रखी है, जो जरूरत के अनुसार हो जाती है. दूसरे किसान भाइयों को भी उनकी मांग पर फसल की सिंचाई के लिए पानी मुहैया करवाता हूं. मै किसान भाइयों को हमेशा कहता हूं कि आज हम लोग कोई एक प्रकार की खेती कर खुशहाल और समृद्ध नहीं बन सकते हैं. इसके लिए खेती किसानी के साथ-साथ कृषि के सहायक कार्य जैसे मुर्गीपालन, मछली पालन, पशुपालन, जो एक दूसरे पर निर्भर हैं, इन्हें अपना कर अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं.

मैंने अपने खेत पर एक सौ फुट लम्बा, 70 फुट चैड़ा और 12 फुट गहरा फार्म पौंड  बना रखा है. इसके निर्माण के लिए सरकार से अनुदान भी मिला था. सिंचाई के साथ-साथ पौंड में मत्स्य बीज डाल कर मछलीपालन कर लेता हूं. इसके लिए कोलकाता से शुरू में दस हजार मत्स्य बीज लाया था. एक किलो की मछली 80 से 100 रूपये में बिक जाती है. मैंने मत्स्य प्रशिक्षण विद्यालय उदयपुर से 2004 में ट्रेनिंग ली थी, जो मेरे काम आई. फार्म पौंड के किनारे प्रकाश पाश्‍र्व लगा रखा है, इससे फायदा यह है कि खेत में फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीट पतंगे रात को पानी मे गिर जाते हैं. इससे दोहरा लाभ होता है, फसल भी खराब नहीं होती और मछलियों का भोजन भी हो जाता है.

अतिरिक्त आय के लिए खेत पर पांच-सात भैंसे बांध रखी हैं. एक भैंस हाल ही 46 हजार रूपये में बेची है. भैंसों से दूध, दही, घी मिल जाता है. उनका गोबर बायोगैस संयंत्र में काम आ जाता है. यह संयंत्र वर्ष 2007-08 में बनाया था. अपने खेत पर मुर्गीपालन भी करता हूं. ये पक्षी खेत में दीमक तथा हानिकारक कीड़ों को खाकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. उनकी विष्टा खाद के रूप में काम आती है. कृषि के जानकार लोगों के मुताबिक इनकी बींट की खाद से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है. देसी मुर्गा पांच सौ से सात सौ रूपये में बिक जाता है. लियाक़त अली के पुत्र इंसाफ कहते हैं कि हमारे खेत पर मुर्गे-मुर्गियों और इनके चूजों की संख्या काफी हो गई थी, लेकिन हाल ही में थोड़ी सी लापरवाही के चलते ये पक्षी वन्य जीवों के शिकार हो गए. अब कुछ मुर्गे-मुर्गीयां ही बची हैं. इनकी सुरक्षा के लिए जल्दी ही फार्म पौंड पर लोहे का जाल डालकर एक बड़ा पिंजड़ा बना रहे हैं.

लियाक़त भाई अपनी सफलता की सारी कहानी बयां करते हुए कहते हैं कि मुझे मान-सम्मान, धन-दौलत अमरूदों की उद्यानिकी फसल से ही मिली है. मेरे यहां कोई आए और बिना अमरूद खाये कैसे चला जाए. इसके लिए मैंने 20-25 अमरूदों के पेड़ अलग से छोड़ रखे हैं, ताकि अमरूदों का स्वाद आने वाला अतिथि चख सके. वे कहते हैं मुझे अनेक इनाम मिले हैं, लेकिन सबसे बड़ा सम्मान जयपुर में कृषक सम्मान समारोह में मिला. इससे मेरा और उत्साहवर्धन हुआ है.

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