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16 अप्रैल 2013

छुई मुई का फूल



मैं छुई-मुई का नन्हा फूल हूँ
कुदरत ने भरे हैं मुझमें
कई खुशनुमा रंग
रूप-रंग-रस सब है
फिर भी नहीं होती
मेरी गिनती फूलों में
मैं चाहता हूँ अपनी
अलग पहचान
दूसरे फूलों की तरह |
मैं छुई-मुई का बेटा हूँ
जो गाँव की
नवेली कनिया की तरह शर्मीली है
छूते ही सिकुड़ जाती है
सबका मनरंजन बनती है |
मैं छुई-मुई का बेटा हूँ
जो पेड़ तो दूर
लता भी नहीं बन पाती
घास की तरह बस धरती पर ही
छितर कर रह जाती है
मैं अकेला कितना सिर उठाऊं
चाहता हूँ माँ भी अब जागे
ताकि मैं भी एक ऊँचाई पाऊं
मेरी भी गिनती हो फूलों में
आखिर मुझमें क्या कमी है
कुदरत ने मेरे नन्हे आकार में भी
सुंदर चित्रकारी की है |

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