आंखों के ऊपर और नीचे की पलकों के भीतरी भाग एवं आंख के सामने के भाग में पुतली को छोड़कर एक पतली श्लेषमा झिल्ली रहती है। इसे कन्जटाइवा अथवा नेत्र श्लेषमा कहते हैं। यह बाहरी कचरे आदि से नेत्र की सुरक्षा करती है।
रोग का कारण- कन्जिक्टिवाइटिस कई कारण होते हैं। यह रोग जीवाणुओं या विषाणुओं इत्यादि जीवित इकाइयों से भी हो सकता है और भौतिक या रासायनिक पदार्थों जैसे आंखों में कचरा या कोई रासायनिक पदार्थ जाने से भी हो सकता है। कई तरह की बीमारियां जैसे छोटी-माता खसरा फ्लू आदि में भी। कन्जक्टिवाइटिस एक विषाणु जन्य रोग है एडीनोवाइरल टाइप 8 द्वारा फैलता है। वैसे जीवाणुओं में होने वाली बीमारियां भी एक-दूसरे से अलग है।
रोग के लक्षण- नेत्र श्लेषमा शोथ के इस प्रकार के श्लेषमा पर छोटे-छोटे दाने दिखते हैं। वास्तव में ये दाने लिम्फोसाइट्स नामक श्वेत रक्त कोशिकाओं के इक_े होने से बनते हैं। इस तरह नेत्र श्लेषमा शोथ में आंखों की श्लेषमा में छाले पड़ जाते हैं। आंखों की पुतली भी रोग से प्रभावि होती है। कार्निया संबंधी जटिलताएं
7 से 10 दिन पश्चात मिलती है। इसमें पुतली की दीवारों पर सूजन आ जाती है। फिर कुछ अपारदर्शी धब्बे से बन जाते हैं। जो श्लेष्मा शोथ ठीक होने के पश्चात भी कई महीनों तक बने रहते हैं।
इस रोग के लक्षण- आंखों में दर्द, जलन तथा खुजली होना।
- प्रकाश असहनीय लगता है। इस स्थिति को फोटोफोबिया कहते हैं।
- आंखों से श्लेष्मा और मवादयुक्त गाढ़ा स्त्राव निकलता है। रोग की तीव्र अवस्था में खून भी आ जाता है।
- आंखों में कोई वस्तु गढऩे का एहसास होता है।
रोग कैसे फैलता है- कन्जिक्टिवाइटिस संक्रामक बीमारी जो परस्पर संपर्क से तेजी से फैलती है। आंखों के स्त्राव में रोग के वायरस होते हैं। यह स्त्राव में रोग के वायरस होते हैं। यह स्त्राव हाथों, कपड़ों, रूमाल, चश्मे आदि के माध्यम से अन्य व्यक्ति तक पहुंच जाता है। जब रोग फैल रहा हो तो स्वीमिंग पुल में नहाने से बीमारी लग सकती है इसके अलावा भीड़ भरे स्थानों से भी यह रोग हो सकता है।
रोग का इलाज- वायरल कन्जक्टिवाइटिस का कोई विशेष इलाज नहीं है। फिर भी इसके लिए निम्नलिखित उपाय करते हैं
- गुनगुने और नमक मिले पानी से दिन में तीन-चार बार आंखें साफ करना चाहिए। आंखों के धोने से कीचड़, जिसमें रोग के विषाणु भी होते हैं। डॉक्टर की सलाह से आंखों में दवा डालना चाहिए वरना इससे आंखों को नुकसान भी पहुंच सकता है।
- पट्टी या पेड का उपयोग न करके गहरे रंग का चश्मा लगाना चाहिए।
आंखों के ऊपर और नीचे की पलकों के भीतरी भाग एवं आंख के सामने के भाग में पुतली को छोड़कर एक पतली श्लेषमा झिल्ली रहती है। इसे कन्जटाइवा अथवा नेत्र श्लेषमा कहते हैं। यह बाहरी कचरे आदि से नेत्र की सुरक्षा करती है।
रोग का कारण- कन्जिक्टिवाइटिस कई कारण होते हैं। यह रोग जीवाणुओं या विषाणुओं इत्यादि जीवित इकाइयों से भी हो सकता है और भौतिक या रासायनिक पदार्थों जैसे आंखों में कचरा या कोई रासायनिक पदार्थ जाने से भी हो सकता है। कई तरह की बीमारियां जैसे छोटी-माता खसरा फ्लू आदि में भी। कन्जक्टिवाइटिस एक विषाणु जन्य रोग है एडीनोवाइरल टाइप 8 द्वारा फैलता है। वैसे जीवाणुओं में होने वाली बीमारियां भी एक-दूसरे से अलग है।
रोग के लक्षण- नेत्र श्लेषमा शोथ के इस प्रकार के श्लेषमा पर छोटे-छोटे दाने दिखते हैं। वास्तव में ये दाने लिम्फोसाइट्स नामक श्वेत रक्त कोशिकाओं के इक_े होने से बनते हैं। इस तरह नेत्र श्लेषमा शोथ में आंखों की श्लेषमा में छाले पड़ जाते हैं। आंखों की पुतली भी रोग से प्रभावि होती है। कार्निया संबंधी जटिलताएं
7 से 10 दिन पश्चात मिलती है। इसमें पुतली की दीवारों पर सूजन आ जाती है। फिर कुछ अपारदर्शी धब्बे से बन जाते हैं। जो श्लेष्मा शोथ ठीक होने के पश्चात भी कई महीनों तक बने रहते हैं।
इस रोग के लक्षण- आंखों में दर्द, जलन तथा खुजली होना।
- प्रकाश असहनीय लगता है। इस स्थिति को फोटोफोबिया कहते हैं।
- आंखों से श्लेष्मा और मवादयुक्त गाढ़ा स्त्राव निकलता है। रोग की तीव्र अवस्था में खून भी आ जाता है।
- आंखों में कोई वस्तु गढऩे का एहसास होता है।
रोग कैसे फैलता है- कन्जिक्टिवाइटिस संक्रामक बीमारी जो परस्पर संपर्क से तेजी से फैलती है। आंखों के स्त्राव में रोग के वायरस होते हैं। यह स्त्राव में रोग के वायरस होते हैं। यह स्त्राव हाथों, कपड़ों, रूमाल, चश्मे आदि के माध्यम से अन्य व्यक्ति तक पहुंच जाता है। जब रोग फैल रहा हो तो स्वीमिंग पुल में नहाने से बीमारी लग सकती है इसके अलावा भीड़ भरे स्थानों से भी यह रोग हो सकता है।
रोग का इलाज- वायरल कन्जक्टिवाइटिस का कोई विशेष इलाज नहीं है। फिर भी इसके लिए निम्नलिखित उपाय करते हैं
- गुनगुने और नमक मिले पानी से दिन में तीन-चार बार आंखें साफ करना चाहिए। आंखों के धोने से कीचड़, जिसमें रोग के विषाणु भी होते हैं। डॉक्टर की सलाह से आंखों में दवा डालना चाहिए वरना इससे आंखों को नुकसान भी पहुंच सकता है।
- पट्टी या पेड का उपयोग न करके गहरे रंग का चश्मा लगाना चाहिए।
बहुत ही लाभप्रद जानकारी,धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंArе grаteful for ρenning this, neeԁ tο lovе manу men checκ оut mу sіte http://garсinіаcambogia.
जवाब देंहटाएंoгg/fruit-ехtrаct/.