Minakshi Pant
जिस्म से अलग मिलो कहीं
आज फिर सपने में तुम्हें देखा ...
इस बार भी तुम्हे छुने की
ख्वाइश हुई ...
आज फिर बड़ी मुश्किल से
खुद को रोका मैंने ...
इस बीच तो हवस के सिवा
कुछ भी नहीं ...
कभी मिलो जिस्म से अलग
कही दूर मुझसे ...
जहाँ न तुम और न ही
मैं रहूँ ...
एक दूजे के अहसास का
सिर्फ जल तरंग सा बजे
ये इजहार और इकरारे वफा से
अच्छा होगा ...
फिर हवस का न इसमें
नामों निशां होगा
जिस्म से अलग मिलो कहीं
आज फिर सपने में तुम्हें देखा ...
इस बार भी तुम्हे छुने की
ख्वाइश हुई ...
आज फिर बड़ी मुश्किल से
खुद को रोका मैंने ...
इस बीच तो हवस के सिवा
कुछ भी नहीं ...
कभी मिलो जिस्म से अलग
कही दूर मुझसे ...
जहाँ न तुम और न ही
मैं रहूँ ...
एक दूजे के अहसास का
सिर्फ जल तरंग सा बजे
ये इजहार और इकरारे वफा से
अच्छा होगा ...
फिर हवस का न इसमें
नामों निशां होगा
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