दूर तलक जब हम सफ़र तय करते गए ...
तुम्हारे हाथ
मेरे हाथो में थे
हाथ पकडे पकडे साथ चलते गए
हाथो में पसीना आ गया था
भीग गए थे ये आपस में मिल कर
आज रात
अपने दोनों हाथ
मैं पकड़ कर सो रहा हूँ
तुम्हारे प्यार की सोंधी सी खुशबु
हाथो से आती है
ऐसे लगता है जैसे दो सौंधे से जिस्म इक बंद मुट्ठी में सो रहे हों ......
Sudarshan Diwan
तुम्हारे हाथ
मेरे हाथो में थे
हाथ पकडे पकडे साथ चलते गए
हाथो में पसीना आ गया था
भीग गए थे ये आपस में मिल कर
आज रात
अपने दोनों हाथ
मैं पकड़ कर सो रहा हूँ
तुम्हारे प्यार की सोंधी सी खुशबु
हाथो से आती है
ऐसे लगता है जैसे दो सौंधे से जिस्म इक बंद मुट्ठी में सो रहे हों ......
Sudarshan Diwan
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)