बाल्यावस्था में पहुँचकर प्रहलाद ने विष्णु-भक्ति शुरू कर दी। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने गुरु को बुलाकर कहा कि ऐसा कुछ करो कि यह विष्णु का नाम रटना बंद कर दे। गुरु ने बहुत कोशिश की किन्तु वे असफल रहे। तब असुरराज ने अपने पुत्र की हत्या का आदेश दे दिया।
उसे विष दिया गया, उस पर तलवार से प्रहार किया गया, विषधरों के सामने छोड़ा गया, हाथियों के पैरों तले कुचलवाना चाहा, पर्वत से नीचे फिंकवाया, लेकिन ईश कृपा से प्रहलाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। तब हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को बुलाकर कहा कि तुम प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ जाओ, जिससे वह जलकर भस्म हो जाए।
उसका अहित करने के प्रयास में होलिका तो स्वयं जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद हँसते हुए अग्नि से बाहर आ गया। इसलिए होली पर्व मनाते समय वास्तविक भाव को ध्यान में रखकर होली दहन करें।
इसके लिए फिर आप चाहे तो विगत वर्षों के बुरे अनुभवों और असफलताओं को एक कागज पर लिखकर अग्नि को समर्पित कर दें। अपने मन में चल रहे नकारात्मक भावों को होली दहन में डाल दें। तभी आप भी सकारात्मकता सोच से आगे बढ़ते हुए प्रहलाद की तरह ईश कृपा के पात्र बन जाएँगे।
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