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30 मार्च 2013

मूर्ख बनाने के लिए आखिर एक अप्रैल ही क्यों?

अप्रैल फूल का नाम जुबान पर आते ही सभी के दिमाग पर एक अप्रैल की तारीख छा जाती है। भले ही आप सभी अपने दोस्तों या करीबियों के साथ कोई मजाक कर उन्हें मूर्ख बनाने की कोशिश हर रोज करते होंगे, लेकिन एक अप्रैल को यह कुछ खास होता है। यूं समझिए कि यह दिन खास इसलिए ही रखा कि आप अपनों के साथ कुछ मजाक कर उन्हें मूर्ख बना सकें और उनके चेहरे पर कुछ समय के लिए हंसी ला सके। लेकिन ध्यान यह भी रखना चाहिए कि आपका मजाक किसी के लिए नुकसानदायक साबित न हो जाए। लेकिन यहां पर एक बात सोचने वाली यह है कि आखिर एक अप्रैल की ही तारीख मूर्ख दिवस के लिए क्यों रखी गई। आइए जानते हैं :-
दरअसल अप्रैल फूल का इतिहास का बहुत ही पुराना है। इस बारे में 1392 में चॉसर के कैंटबरी टेल्स में पाया जाता है। ब्रिटिश लेखक चॉसर की किताब द कैंटरबरी टेल्स में कैंटरबरी नाम के एक कस्बे का जिक्र किया गया है। इसमें इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द्वितीय और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई की तारीख 32 मार्च, 1381 को होने की घोषणा की गई थी जिसे वहां के लोग सही मान बैठे और मूर्ख बन गए, तभी से एक अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाया जाता है।
हालांकि ऐसे लोग भी कम नहीं हैं जो यह मानते हैं कि इसकी शुरुआत 17वीं सदी में हुई थी। इसके पीछे बड़ी दिलचस्प कहानी है। 1564 से पहले यूरोप के लगभग सभी देशों में एक जैसा कैलेंडर प्रचलित था, जिसमें हर नया वर्ष पहली अप्रैल से शुरू होता था। सन 1564 में वहां के राजा चा‌र्ल्स नवम ने एक बेहतर कैलेंडर को अपनाने का आदेश दिया। इस नए कैलेंडर में 1 जनवरी को वर्ष का प्रथम दिन माना गया था। अधिकतर लोगों ने इस नए कैलेंडर को अपना लिया, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने नए कैलेंडर को अपनाने से इन्कार कर दिया था। वह पहली जनवरी को वर्ष का नया दिन न मानकर पहली अप्रैल को ही वर्ष का पहला दिन मानते थे। ऐसे लोगों को मूर्ख समझकर नया कैलेंडर अपनाने वालों ने पहली अप्रैल के दिन विचित्र प्रकार के मजाक करने और झूठे उपहार देने शुरू कर दिए और तभी से आज तक पहली अप्रैल को लोग फूल्स डे के रूप में मनाते हैं।
इस दिन को लेकर कई और कहानियां भी प्रचलित हैं, लेकिन हर कथा का मूल उद्देश्य है पूरे दिन को मनोरंजन के साथ व्यतीत करना है। बहुत पहले यूनान में मोक्सर नामक एक मजाकिया राजा था। एक दिन उसने स्वप्न में देखा कि किसी चींटी ने उसे जिंदा निगल लिया है। सुबह उसकी नींद टूटी तो स्वप्न की बात पर वह जोर-जोर से हंसने लगा। रानी ने हंसने का कारण पूछा तो उसने बताया कि रात मैंने सपने में देखा कि एक चींटी ने मुझे जिंदा निगल लिया है। सुन कर रानी भी हंसने लगी। तभी एक ज्योतिष ने आकर कहा, महाराज इस स्वप्न का अर्थ है, आज का दिन आप हंसी-मजाक व ठिठोली के साथ व्यतीत करें। उस दिन अप्रैल महीने की पहली तारीख थी। बस तब से लगातार एक हंसी-मजाक भरा दिन हर वर्ष मनाया जाने लगा।
एक अन्य लोक कथा के अनुसार एक अप्सरा ने किसान से दोस्ती की और कहा- यदि तुम एक मटकी भर पानी एक ही सांस में पी जाओगे तो मैं तुम्हें वरदान दूंगी। मेहनतकश किसान ने तुरंत पानी से भरा मटका उठाया और पी गया। जब उसने वरदान वाली बात दोहराई तो अप्सरा बोली- तुम बहुत भोले-भाले हो, आज से तुम्हें मैं यह वरदान देती हूं कि तुम अपनी चुटीली बातों द्वारा लोगों के बीच खूब हंसी-मजाक करोगे। अप्सरा का वरदान पाकर किसान ने लोगों को बहुत हंसाया। इसी कारण ही एक हंसी का पर्व जन्मा, जिसे हम अप्रैल फूल के नाम से पुकारते हैं।
बहुत पहले चीन में सनन्ती नामक एक संत थे, जिनकी दाढ़ी जमीन तक लम्बी थी। एक दिन उनकी दाढ़ी में अचानक आग लग गई तो वे बचाओ-बचाओ कह कर उछलने लगे। उन्हें इस तरह उछलते देख कर बच्चे जोर-जोर से हंसने लगे। तभी संत ने कहा, मैं तो मर रहा हूं, लेकिन तुम आज के ही दिन खूब हंसोगे, इतना कह कर उन्होंने प्राण त्याग दिए।

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