आपका-अख्तर खान

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15 मार्च 2013

अब यारों की नहीं ज़रुरत,

अब यारों की नहीं ज़रुरत,हमने जीना सीख लिया !
धीरे धीरे,बिना सहारे, हमने रहना ,सीख लिया !

मैं अब खुश हूँ,तेरी दुनिया ,मुझको नहीं बुलाती है !
धीरे धीरे,हमने खुद ही,नगर बसाना, सीख लिया !

मैं अब खुश हूँ, इंतज़ार में ,अब कोई रथवान नहीं !
धीरे धीरे हमने खुद ही, पैदल चलना सीख लिया !

मैं अब खुश हूँ, तेरे सिक्के, नहीं चले, बाजारों में !
धीरे धीरे हमने खुद ही,कमा के,खाना सीख लिया !

मैं अब खुश हूँ, मुझे ठण्ड में,याद न तेरी आती है !
धीरे धीरे हमने खुद ही,आग जलाना,सीख लिया !

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