23 साल का वासे अपने किराए के घर में तख्त पर लेटा है। बगल में उसके
अब्बा मिर्जा मन्नान बेग बैठे हैं। वासे का परिवार पिछले दस साल से किराये
के मकान में रह रहा है। किसी जमाने में हैदराबाद में उनका अपना घर होता
था।
आर्थिक हालत खराब होने पर परिवार को अपना घर छोड़ना पड़ा और वासे को
पढ़ाई। 7वीं क्लास तक पढ़ा वासे दुकानों पर सेल्समैन का काम करके रोजीरोटी
के लिए दिन में 200-250 रुपये कमा लेता था। किसी जमाने में वह लगातार बढ़
रही महंगाई से संघर्स कर रहे अपने 9 सदस्यों के परिवार का सहारा था। लेकिन
हैदराबाद के बम धमाकों ने उसे एक बार फिर बिस्तर पर लिटा दिया है। '
वासे की खुशकिस्मती यह है कि वह बम धमाकों में सिर्फ घायल हुआ है,
लेकिन उसकी बनसीबी यह है कि वह धमाकों में दूसरी बार घायल हुआ है। उसका
दूसरा बार घायल होना ही उसके परिवार के लिए त्रास्दी बन गया है। वह इससे
पहले 2007 में हुए मक्का मस्जिद धमाकों में बुरी तरह घायल हुआ था और 4
ऑपरेशनों के बाद उसकी जान बच सकी थी।
धमाकों में दूसरी बार घायल होने पर उसे शक की निगाह से भी देखा गया।
स्थानीय मीडिया और फिर राष्ट्रीय मीडिया ने उसे धमाकों का संदिग्ध करार दे
दिया। वासे कहता है, 'मुझे सिर्फ मुसलमान होने पर ही धमाकों का संदिग्ध मान
लिया गया, किसी ने एक पल के लिए भी यह नहीं सोचा कि उस परिवार पर क्या बीत
रही होगी जिसका सबसे बड़ा बम धमाकों का दूसरी बार निशाना बना है।'
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