Manish Satpal Verma एक ऐसी भी घडी आएगी,
जिस्म से रूह बिछड़ जाएगी...
न कोई रुत न बहारें होंगी,
चांदनी रात भी दिल जलाएगी,
अब न कोई भी रौशनी होगी,
दिए से बाती भी बिछड़ जाएगी,
न कोई ख्वाहिश न तमन्ना होगी,
ना कोई याद ही सताएगी...
एक ऐसी भी घडी आएगी,
जिस्म से रूह बिछड़ जाएगी"
जिस्म से रूह बिछड़ जाएगी...
न कोई रुत न बहारें होंगी,
चांदनी रात भी दिल जलाएगी,
अब न कोई भी रौशनी होगी,
दिए से बाती भी बिछड़ जाएगी,
न कोई ख्वाहिश न तमन्ना होगी,
ना कोई याद ही सताएगी...
एक ऐसी भी घडी आएगी,
जिस्म से रूह बिछड़ जाएगी"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)