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13 मार्च 2013

"मेरी तश्वीर की तासीर तुम्हें क्या मालुम ,

Rajiv Chaturvedi
"मेरी तश्वीर की तासीर तुम्हें क्या मालुम ,
कल तक कराहते कातर से जो लोग यहाँ रहते थे
जज़्बात और जमीर की आवाज़ पर चीखते हैं वह
और शातिर की शमशीर सियासत से रियासत बन कर
छीन लेती थी ख्वाब और ख्वाहिश सभी
खौफ के साये में हर ख्वाब यहाँ रहते थे
जुल्म -ओ -तसद्दुद की तहरीर लिए हाथों में
हर बड़े कातिल को बादशाह कहा करते थे
मेरी तश्वीर की तासीर तुम्हें क्या मालुम ,
कल तक कराहते कातर से जो लोग यहाँ रहते थे
अब वो हर शातिर से लड़े जाते हैं
मैं मर चुका था बहुत पहले
मगर मेरे गम में भी दम था इतना
मेरी तश्वीर की तासीर में बेख़ौफ़ तबस्सुम महका
और मेरी याद की खुशबू खुदा तक पहुँची ." -----राजीव चतुर्वेदी

2 टिप्‍पणियां:

  1. तुम हो घुल्य उम्दा,
    हम बेहतरीन घोलक
    घोल जब हुआ तैयार,
    तो तमाशा बन गया!
    सड़कों से गुजरे,
    तो हँगामा हो गया!!
    ~कवि

    जवाब देंहटाएं
  2. तय किया हमने ख़ुदा के वास्ते,
    कैद कर पाये न पायें दिल में उनको;
    बस एक तश्वीर गिरेबां में रख लेंगे!
    वख़्त मिलते हीं,
    एक झलक बस देख लेंगे!!
    यादों का नासूर झेला बहुत!
    अब नाम से हीं तसल्ली कर लेंगे!!
    ~kavi

    जवाब देंहटाएं

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