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22 मार्च 2013

तुझे मेरे कल कि कसम

Satish Sharma
तुझे मेरे कल कि कसम -ए मेरे हमवतन ,
जो बीता दिए हमने -अंधेरों में रौशनी के लिए.
गला दिये मोम से जिस्म -शिकवा ना शिकायत की ,
जला दिए सब अपने वजूद -देश कि ख़ुशी के लिए .

जमाना कहता रहा - ना रोये अपनी बेबसी पर ,
हँसे ने खुल के अपनी जीत -उनकी शिकस्त पर .
तुम्हे फूलों कि चाह में -बिस्तर किये खुद खारों के
चमन को सीचना चाहा था - झोकों से बहारों के .

आज भी चाह नहीं पूजो -कि आरती उतारो तुम
इन्हें आबाद रखना - जो हम नहीं रहे तो क्या ,
चमन आबाद रहना चाहिए -चाहे कई माली नहीं रहे .
गुलिस्ता अपने फूलों से कभी खाली नहीं रहे .

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