आपका-अख्तर खान

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05 मार्च 2013

तुम सोच रहे हो बस, बादल की उड़ानों तक..

तुम सोच रहे हो बस, बादल की उड़ानों तक..
मेरी तो निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक,

लोबान का सौंधापन, चंदन की महक में है..
मंदिर का तरन्नुम है, मस्जिद की अज़ानों तक,

इक ऐसी अदालत है, जो रूह परखती है..
महदूद नहीं रहती वो सिर्फ़ बयानों तक,

हर वक़्त फ़िजाओं में, महसूस करोगे तुम..
मैं प्यार की ख़ुशबू हूँ, महकूंगा ज़मानों तक..!!

(आलोक श्रीवास्तव)

1 टिप्पणी:

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